पहचान कविता
सूर्य दिशा कि पहचान क्या सूर्य उदय से हैसूरज नहीं निकलतानहीं आताचांद का ही राज रहतातब क्या सूर्य दिशा कि पहचाननहीं हो पाती।प्रश्न है यह तुम्हारे अतीत सेतुम्हारे वर्तमान सेतुम्हारे भविष्य सेक्यों…
सूर्य दिशा कि पहचान क्या सूर्य उदय से हैसूरज नहीं निकलतानहीं आताचांद का ही राज रहतातब क्या सूर्य दिशा कि पहचाननहीं हो पाती।प्रश्न है यह तुम्हारे अतीत सेतुम्हारे वर्तमान सेतुम्हारे भविष्य सेक्यों…
प्रभु कब करोगेकृपा मुझ परकब कब तड़पा तड़पामेरी भावनाओं कोतपायोगेझुलाते जाओगेकब तक मेरे नयन कोरोज अपनी तरफअपने दर कि तरफशुवह शाम दोपहर आधी रात तुम रहो या न रहो फिर भी देखने…
सूर्य दिशा कि पहचानक्यासूरज के उदय होने से हैंसूर्य नही निकलेगान ही सुबह कि लालमा रहतीतब क्या चांद का राज ही रह जाताक्या सूर्य दिशा का पता ही नहीं रहताप़शन…
तुम कितने पास आ गये हों तुम्हारी निकटता में जितना उत्कृष्ट निश्छल प्रेम का अभाव हो रहा है तुम प्रेम हों कि परमात्मा योगी हों कि भोगी हो नर हो…
मन उड़ उड़ वहां जाता पहुंच कर वहीं के गीत गाता सुबह शाम अंधेरे में उजले में,रात में अकेले में नहीं घबराता वहीं पहुंच जाता और ऊंचे ऊंचे पहुंच, गमलों…
अब तो बस शब्दों का व्यापार है। सत्य असत्य का शब्द ही आधार है।। शब्दों से भरी हवाएं चारों ओर वह रही है शब्दों से भरे अखबारों कि रद्दी बिक…
अब तो बस शब्दों का व्यापार है।सत्य असत्य का शब्द ही आधार है।।शब्दों से भरी हवाएं चारों ओर वह रही हैशब्दों से भरे अखबारों कि रद्दी बिक रही हैशब्दों से…
लो मेरे मीत हो गयायह जहां तुम्हाराछोड़ा यह झौपड़ी तुम्हाराजो बना था बसेरा हमारामें न लोटू अब यहां बसदुआ देना ही फर्ज तुम्हारासबकुछ लूट गया अब क्या हैं न्यारा न्याराकिसे…
तुम कितने पास आ गये होंतुम्हारी निकटता में जितना उत्कृष्टनिश्छलप्रेम का अभाव हो रहा हैतुम प्रेम हों कि परमात्मायोगी हों कि भोगी होनर हो कि नारायण होंक्या हो तुम मेरीसमझ में…
मन उड़ उड़ वहां जातापहुंच करवहीं के गीत गातासुबह शाम अंधेरे मेंउजले में,रात में अकेले मेंनहीं घबरातावहीं पहुंच जाताऔर ऊंचे ऊंचे पहुंच, गमलों में क्यारियों मेंखिलते फूलों के साथघूमते भंवरों…
आज तो बड़ा दिन था पर पता नहीं चलाबिना हलचल के ही गुजर गयारोज कि भाती सूरजउषा के साथ फाग खेलता आयासंध्या के साथ आंख मिचौली करता चला गयाचतुर्थी का चंद्रमाउभरा…
आज तो बड़ा दिन था पर पता नहीं चला बिना हलचल के ही गुजर गया रोज कि भाती सूरज उषा के साथ फाग खेलता आया संध्या के साथ आंख मिचौली…