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मंत्र


सांध्य का समय था खटिया पर रोग ग्रस्त बूड़ा आदमी लेटा हुआ था वह लगातार ख़ास रहा था पानी लेकर आने वाली  उस बूढ़े कि अर्धांगिनी थी दो घूंट पानी पीकर बूड़े ने कहा था नजदीक आइए देखो हमारा जीवन पूरा हो रहा है परमात्मा के देवदूत हमारे देह के चक्कर लगा रहे हैं कभी भी प्राण निकाल कर लें जायेगा फिर खांसी का वेग चालू हो गया था अर्धांगिनी बगल में ही थीं तुरंत ही पानी का गिलास उठाकर नजदीक पहुंच गयी थी  फिर अपने ही लहज़े में कहने लगी थीं कि कहते हैं कि डाक्टर भगवान के रूप होते हैं और भगवान को प्रसाद चढ़ाना पड़ता है धूप दीप अगरबत्ती लगाना पड़ती है तब भगवान अपनी दया याचिका स्वीकार करते हैं पर धरती पर तो डाक्टर को नब्ज देखने के साथ धड़कन कि भी फीस चाहिए अन्य बिमारियों का अलग धन जो मेरे पास था सब कुछ डाक्टरों ने ले लिया पर यह कलमुंही खांसी पीछा नहीं छोड़ रहीं हैं चलों थोड़ा सा पानी पीजिए आराम मिलेगा ??

हालांकि बुढ़िया ने पानी पिला दिया था खांसी थम गई थी तभी तो बूढ़े व्यक्ति ने कहां था कि देखो तुमने सारे जीवन दुःख सुख में साथ दिया है हमारा तुम्हारा साथ साठ साल का था फिर कमजोर आवाज में भगवान से प्रार्थना करूंगा कि अगले जन्म में तुम ही जीवन संगिनी बनो इतना कहकर फिर खांसी का दोर चालू हो गया था राहत मिलते ही हमारे तुम्हारे चार लड़के बहुएं है हमने मिल जुल कर सभी लड़कों के लिए अलग-अलग खैत कुआं मेहनत मजदूरी कर के खरीद कर उनके नाम कर दिए हैं जो भी माता पिता के कर्तव्य हैं उन्हें पूरा कर दिया है तुमने भी हर समय कंधा से कंधा मिलाकर साथ दिया है पर जीवन के आखिरी पड़ाव आख़री सांस में कह रहा हूं कि बच्चों कि खुशहाली के लिए हमने सब कुछ  उनके नाम पर कर दिया है  तुम्हारे लिए संपत्ति के नाम पर कुछ भी नहीं है यह गलती मेरी ही है  हालांकि हमारे बच्चे मां बाप का ख्याल रखते हैं कारण उन्हें लगता है कि हमारे पास और भी धन दौलत हैं जो नहीं है तुम्हें तो पता ही है हां उसका कारण है हमारा वह कमरा और उसके अन्दर रखी हुई अलमारी जो मैंने अपने माता-पिता के निधन के बाद खोली थी जिसमें धन दौलत के नाम पर ...... था फिर मैंने कभी भी उस अलमारी को नहीं खोला जब बच्चे जवान शादीशुदा हो गए तब उस अलमारी कि चाबी मैंने हमेशा अपने पास रखी थी फिर खी खी खी... में जीवन के अंतिम समय में तुम्हें यह चाबी दे रहा हूं इसे हमेशा अपनी कमर में बांध कर रखना जीवन का आख़री मुकाम सुख शांति से गुजर जाएगा क्योंकि यह धन दौलत का युग है जिसके पास दौलत हैं उसकि ही बच्चे सेवा करते हैं बर्ना कोई मतलब नहीं  ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌??

एक बार फिर से खांसी का दौर शुरू हो गया था शायद वह अंतिम दौर था बूढ़े के प्राण यमराज के दूत हर ले गए थे बुढ़िया ने बहुत ही हिलाया डुलाया था अनेकों प्रकार कि जीवन के कठिन कठोर तपस्या कि याद दिलाई थी पर दैह निष्प्राण हो गई थी फिर क्या अर्धांगिनी कि आंखों से अंशू धारा वह रहीं थीं उसके मुंह से चीख निकल रही थी पर वाह! रे सावन कि घटा बेटे बहुओं को कान में सुनवाई नहीं दे रही थी ।

मेघ ने कृपा कर दी थी भोर के समय बे दूसरे दिशा में चले गए थे गांव में मुर्गा बाग लगा रहा था मंदिर कि घंटी बज रहीं थी जल्दी नींद से जागने वाले परमेश्वर को याद कर या  कर अपनी गलती के लिए छमा याचना मांग रहै थें परमेश्वर उनके अभिनव को देख कर मंद मंद मुस्कुरा थैउन लोगों को पता नहीं था या फिर अनजान थें कि परमात्मा के पास सबसे बड़ा कम्प्यूटर हैं जिसमें बे इंसान कि सारे जीवन कि उपलब्धी का हानि लाभ , का डेटा सेब करते हैं जैसे कि ......

खैर बुड्ढी कि चीख पुकार सुनकर पड़ोसी उनके उनके घर कि कुंडी खटखटा रहे थे खट-खट कि आवाज से  बड़ी बहू जाग गई थी उसने आंखें मलते हुए कुंडी खोली थी फिर सास कि रोने कि आवाज भी सुनाई दे रही थी वह भी रोने लगी थीं फिर क्या थोड़ी देर में परिवार के साथ गांव समाज के व्यक्ति घर के बाहर जमा हो गए थे सब उस बूढ़े कि अच्छाई का बखान कर रहे थे विडम्बना है कि जिंदा व्यक्ति कि हर प्रकार से लोग बुराई करते हैं पर मरने के बाद उनकी धारणा उसकी अच्छाई में बदल जाती है ।

थोड़ी देर बाद नजारा ही बदल गया था घर के बाहर जहां गांव मुहल्ले बाले अर्थी लकड़ी का इंतजाम कर रहे थे वही घर के अंदर चीख पुकार निकल रही थी बहूएं ज्यादा रो रही थी वहीं लड़के भी आंसू वहां रहें थे फिर छोटे लड़के ने आंखें  कि कोर से आंसू हांथ

 कि उंगली से पोंछ कर कठोर लहजे में  कहा था सभी से कह रहा हूं कि दादा कि अर्थी जानें से पहले घर का संपत्ति का हिस्सा बांट लिजिए उसी के सुर में सुर मिलाकर बीच के भाई ने भी कहा था 

फिर भाई  जो तीसरे नम्बर का था उसने भी हां में हां मिला दिया था 

पर बड़ भाई आगे पीछे का विचार कर रहा था कारण था दादा कि अलमारी जिसे वह हासिल करना चाहता था वह ऐसे नाजुक समय मे अलमारी नहीं खोना चाहता था  सख्त लहजे से कहां था शर्म नाम कि चीज है या नहीं बाप कि मरी हुई दैह निष्प्राण घर पर ही हैं पड़ोसी गांव मुहल्ले वाले इकठ्ठा हो गए हैं अर्थी सजाई जा रही है और तुम सब बंटवारे पर अडिग हो थू थू  तुम्हारे जैसे भाई को पाकर पिताजी कि आत्मा यही आस पास भटक रहीं होंगी तुम्हारे जैसे स्वार्थी लड़कों को देखकर उन्हें कष्ट पहुंचा होगा फिर अभी मां भी जिंदा है उनका भी जीवन शेष है फिर बे हम सब का बटवारा कर गए हैं सभी को संपत्ति में बराबर बराबर मिला है हमारे पिताजी ने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया ऐसे पिता सात जन्मों में भी नहीं मिलेंगे फिर अभी अम्मा भी हैं उनका भी जीवन शेष है !

बड़े भाई कि बात खत्म भी नहीं हो पाई थी तभी तीसरे नम्बर का भाई बोला था आप ठीक कह रहे हों अम्मा का भी भरण पोषण का विचार करना चाहिए ??

मझला भाई:- इसमें विचार कि क्या बात है अम्मा को दो रोटी ही तो खाना  है कहीं भी मेरा मतलब हम सब के साथ खां लेंगी ।

छोटा भाई :- नहीं ऐसा नहीं होगा जब सब अलमारी का धन बांट रहे हैं तब अम्मा का भी बटवारा होना चाहिए जैसे कि हम चार भाई हैं साल में बारह महीने होते हैं तब सभी भाइयों के साथ अम्मा तीन तीन महीने रहेंगी।

घर के बाहर पड़ोसी गांव वाले सुभचिंतक अर्थी सजा रहे थे लकड़ी कंडो का इंतजाम हो गया था कुछ लोग ऊपर बादलों कि घटा को देख रहे थे कारण यह था कि अगर गांव में कोई भी निष्प्राण शरीर रखा हुआ है जब तक वह पंचतत्व में विलीन नहीं हों जाता है तब तक अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए यह परम्परा वैदिक संस्कृति में आधुनिक टेक्नोलॉजी के समय में भी हैं घर के अंदर अलमारी खोलने के लिए खट-पट हों रही थी और बाहर गांव वाले मेघ को देख रहे थे मन ही मन पानी बरसाने वाले देवता से प्राथना कर रहे थे कि कुछ घंटे के लिए अपनी बूंद को हमारे गांव पर मत बिखेर देना !

ख़ैर अम्मा ने बेटे बहुओं कि मंशा को जाना समझा था फिर पति का आखिरी समय का मंत्र याद आ गया था कठोर लहजे से कहां था कि तुम्हारे जैसे लड़के बहुओं को पाकर मैं अपने आप को धिक्कार रहीं हूं तुम्हारे बाप कि देह घर के अंदर निष्प्राण पड़ीं  है और तुम सब अलमारी के पीछे पड़े हुए हों कान खोल कर सुन लिजिए मेरे जीते-जी अलमारी नहीं खुलेगी ??

रहीं बात में किस बेटे के साथ रहूंगी कितने महीने कोन रखेगा यह फैसला करने वाले तुम सब कौन होते हों तुम्हारे बाप ने तुम सब को क्या इसलिए ही पढ़ाया लिखाया था तुम्हारे व्याह किए तुम्हारे लिए घर वनाए जमीं खरीदी-बिक्री कि कारण यह था कि तुम सब अपना जीवन सुख शांति से व्यतीत कर सकोगे पर तुम सब तो स्वार्थी निकले । भगवान ऐसी औलाद किसी को भी नहीं दे ! रहीं बात मेरी तुम्हरा बाप 

अलमारी में हमारे जीवन यापन के लिए बहुत कुछ संपत्ति छोड़ गया हैं जो मेरी है मेरे जीते-जी किसीको भी नहीं मिलेंगी एसा कहकर बुड्ढी रोने लगी थीं 

हाय हाय तुम तों स्वर्ग वासी हों गए हमें भी साथ में लेकर जाते देखो तुम्हारे बेटे तुम्हें जलाने से पहले तुम्हारी अलमारी का बटवारा करना चाहते हैं हाय हाय बुड्ढी चीख मारकर रो रही थी खैर मां कि चीख पुकार सुनकर बेटों का दिल पसीज गया था बे भी रो रहै थै बहुओं भी विलाप कर रही थी पर उनके विलाप का यह कारण था कि बुड्ढी किसके साथ रहेंगी  कारण यह था कि अलमारी कि चाबी किस को नसीब होंगी ।

मेघ ने कृपा कि थीं चिता कि अग्नि प्रज्वलित हो कर आसमां छू रहीं थीं देह के सभी तत्व वापिस जल अग्नि वायु इत्यादि में मिल रहें थे जैसे कि दो प्रेमी सच हीं है कि यह देह कि संरचना प्रकृति ने कि थी जो कि उसने उसमें प्राण , हाड़ मांस ख़ून से तैयार कि थी लम्बे समय तक देह ने संसार में अपना अभिनय किया था फिर वापस उसे उसी पृक़ती के पास जाना था !

 चारों बेटे बहुओं ने बाप कि तेरहवीं धूमधाम से मनाई थी आस पास के दोस्त यार गांव समाज रिश्तेदार को भी बुलाया था ब्राह्मणों को भोजन कराया गया था वह दान दिया गया था फिर गंगा जी में अस्थियां विसर्जित कर दी गई थी मतलब पिताजी को स्वर्ग भेजने के लिए कोई भी कंजूसी नहीं कि थीं ।

चूंकि अम्मा को अलमारी कि चाबी मिल गई थी जिसे बे हमेशा अपनी कमर में बांध कर रखतीं थीं  उस कमरे में जाती थी फिर अलमारी को खोलने को खट-पट करतीं थी उस समय कोई भी बहू बेटा दिखाई दे जाता था तब जल्दी ही बे कमरे से बाहर निकल कर दरवाजा पर ताला जड़ देती थी फिर सान के साथ कभी छूले पर बैठती तब कभी आराम कुर्सी पर बैठ कर आराम फरमाने लगती फिर कभी कभी टेलीविजन पर रामायण महाभारत जैसे सिरियल देखती रहती कभी कभी किसी संत महात्मा के प्रवचन आ भजन कीर्तन सुनतीं रहतीं थीं अब अम्मा का सारे परिवार के बीच में सम्मान था उन्हें भांति भांति के व्यंजन बहुओं के हाथ का खानें को मिलता था लड़के भी हाथ पैर कि मालिश कर रहे थे कुल मिलाकर सब प्रकार से खुशहाल थीं ।

फिर एक दिन सावन कि बारिश, कड़कती बिजली,के बीच अम्मा भी भगवान के पास चलीं गयी थी रोना धोना फिर चल रहा था बेटों के बीच अलमारी खोलने के लिए बहस हो रही थी पर फिर से बड़ बेटे ने समझाया था कि पहले अम्मा कि सारी व्यवस्था करें जैसे कि दिन तेरहवीं गंगा जी में अस्थियां का विसर्जन आदि ।

अम्मा के क़िया कर्म से निवृत्त होने के बाद अलमारी सभी भाइयों बहूएं की सहमति से खोली गई थी जिसमें संपत्ति के नाम पर पुराने अखबर  किताबें रखीं हुई थी परिवार के सभी सदस्यों ने अपना-अपना माथा माता पिता कि चतुराई पर ठोक लिया था उन्हें भी जीवन के अंतिम समय में केसे सेवा कराना चाहिए मंत्र मिल गया था!!!!।।






 













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1 comment:

  1. यह कहानी बूढ़े पति पत्नी पर आधारित है चूंकि मोजूदा समय में बुढ़ापा में कोई भी सेवा नहीं करना चाहता कारण यह धन का युग है अगर धन हाथ में है तब सभी सेवा करने को राजी रहते हैं ।

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