अल्हड़ प्रेमका के साथ होली कविता


 तेरे सांवले सलोने गाल

उन पर लाल गुलाल।

गुलाबी चेहरा उलझे बाल

नजरे तेरी बनाती है जाल

जाने क्यों आत्मा बेचारी

लिए मन कि पिचकारी

सदियों से देखें राह तुम्हारी

मिलन के गीतों कि है वारी ।

लाज संकोच कर क्या जी सकोगे

अनाड़ियों कि क्या परवाह करोगे

यह परवाह वे आदर्श रोकेंगे

मत करो प्यार रोज कहेंगे

कैसे हृदय रूपी कडाव से

गंगा सी भावनाओं के रंग से ।

भर मन कि पिचकारी से 

न मिटने वाला रंग डालू कैसे

भीड़ में तुम उसी में हम है

रंग कि बोछार ज्यादा गुलाब कम हैं

सरोवर हो रहा पूरा मौसम है

मुस्कुराने का बज रहा सरगम है।

क्यों कि चाहत कि पिचकारी

भरी भावनाओं से भारी

तू खड़ी अपनी अटारी पर

निशाना बांधने में भारी बुद्धी भारी

तुम अकेले कहा महफ़िल में खड़े हों

तेरे जैसे चेहरे जहां रंगे हैं

खोजती नजर जहां तुम जाती हो 

तब वही पीछे खड़ा पाती हों 

देखती प्यार के रंग में।भीगा बदन आपका है

तन से लिपट गये कपड़े योवन तुम्हारा हैं ।

चाहत यही तुम सदा मुस्कुराते रहो 

खूब होली खेलों

जी भर कर गायो

यह भावना से भरी पिचकारी

खाली तब होंगी

इंतजार मिटेगा तब 

जब सामने आप होगी ।।

Kakakikalamse.com

Mahendra Singh s/o shree Babu Singh Kushwaha gram Panchayat chouka DIST chhatarpur m.p India

Post a Comment

Previous Post Next Post