अमावस्या और पूर्णिमा

 तारों के धूमिल प़कास में

आकाश

पूर्णिमा का इंतजार कर रहा था

उसी समय अमावस्या आईं

सदा कि भाती मुस्कुराई

बोले गले में बाहें डाल

मेरे कारण तुम परेशान होते रहे 

मेरे अंधेरे से तुम बदनाम हो गए

इससे मेरी मानो

अपनी पूर्णिमा के पास चलें जायौ

पर आकाश ऐक शर्त है हमारी

आकाश आश्चर्य में डूबा बोला क्या

पूर्णिमा के मिलते ही

ऐक बार मुझे बुलाना तथा कहना उससे कि

अमावस्या ने पूर्णिमा तुमसे मिलने

का प्रस्ताव भेजा है।

एवं कहा है कि

मैं तारों कि रानी

अंधियारे कि दीवानी

सदियों से बहिन

तुम्हारे दर्शन को ललक रहीं 

कहती थी कि ऐक बार ही सहीं

ज्यादा नहीं

छड़ भर को मिलवाना

इस विरह के इतिहास में

मिलन का ऐक छड़

लिख कर

तुम और पूर्णिमा

जहां चाहे चलें जाना।।

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Mahendra Singh s/o shree Babu Singh Kushwaha gram Panchayat chouka DIST chhatarpur m.p India

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