वो अल्हड़ निराली

 चाल निराली आली तोरी

और निराली बोली तोरी

कैश निराले फैलें कारे कारे

चेहरे के चहुं ओर है सारे

बने फिरत है धन सावन के।

नयन निराले कजरारे से

बड़े बड़े सीधे सादे से

भोहो के धनुष बने से

चलत फिरत है जब तिरछे से

तीर बनें हैं और मदन के

गाल निराले भरे भरे से

मुस्कुराते जब गहरे गहरे से 

गुस्सा में उषा बन जाते

प्यार में ये संध्या बन जाते

मन लुभावना है आपन के

दांत निराले मुक्ता जैसे

हंसते हैं जब धन बिजली से

औठ लजीले लालामी लें

आगंतुक कि सलामी ले

सपने देखें चुप हों आवन के।।

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Mahendra Singh s/o shree Babu Singh Kushwaha gram Panchayat chouka DIST chhatarpur m.p India

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