प्रकृति

 दूर धुंधली धुंधली पहाड़ी

उसको चूमता आलिंगन करता आसमान।

कोई कहता मुझसे उस पहाड़ी पर बैठी आत्मा

लगा रही तुम जैसा अनुमान।

इससे एक आवाज उठती

चुपचाप अपने आप से कहतीं

अपनी कल्पना पर

कर न लेना अभिमान

सारा जग है इसी समान

ये धरती ये गगन हैं महान्।

सब मिलाकर बन गये

मानवता के लिए सुंदर जहान।

ये लहलहाते खेत और फसल

गाये बिरहा कि गारी

उड़ते पंछी कि कतार

दूर जा कर लगती

जा रही बादल के पार

सामने पहाड़ पर घने सागौन

महुआ के पेड़ कि कतार

यह सांवला सलोना आसमान

लाल कहीं नीला कहीं

भूरा कही दिखता महान

प्रकृति सुन्दरी को देख 

अनाड़ी मन चकित रह गया

वर्णन कैसे करें

प़तिपल बदलते रूप का 

देखता रह जाता

गूंगा बना आंखें खोलें

तेरी सारी प्रकृति देखा करता

अंदर ही अंदर मन हसा करता

अंतर्मन में प़शन उठा करता।

अन्दर ही अन्दर

उत्तर भी सामने नाचने लगता

तेरा तो न ओर है न छोर हैं

चारों दिशाओं में बस तेरा ही शोर हैं।

इससे आंखें बंद कर

कानों से सुना करता

मन अठखेलियां कर नृत्य नाचा करता

तब तेरा ही रूप

अन्तर में दिखा करता।

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