शब्दों का व्यापार लघु कविता

 अब तो बस शब्दों का व्यापार है।

सत्य असत्य का शब्द ही आधार है।।

शब्दों से भरी हवाएं चारों ओर वह रही है

शब्दों से भरे अखबारों कि रद्दी बिक रही है

शब्दों से न जाने कितने वादे किए जाते हैं

पूरे न किए तब शब्द ही माफी मांगते है

शब्दों को ओढ़ अनेकों प्रतिभाएं चल रही है

कर्म से नाता तोड फलफूल रही है 

शब्दों से लोग अपनी योग्यता बताते हैं

दोस्त अपनी दोस्ती शब्दों से आगे बढ़ाते हैं

और तो और शब्दों के बल पर प्यार हो जाता है

इन्हीं शब्दों से नवयुवक नवयुवती का संसार वस जाता है

शब्दों कि संवेदना न जाने कितने को जोड़े हैं 

शब्दों कि बरसात न जाने कितने को तोड़ें है

शब्दों के बल पर नेता अभिनेता रोजीरोटी धन कमाते हैं

पर कवि लेखक शब्दों को लिखकर बेवकूफ कहलाते हैं

नेता अभिनेता दो शब्दों को कह गृहप्रवेश दुकान

का उद्घाटन करते हैं

भाईसाहब दुनिया शब्दों के घेरे में चल रही है।

आत्मा को परमात्मा से दूर कर तेरा मेरा संजोए हुए है

और तो और धर्म भी शब्दों में कैद हैं 

कुछ पाखंडी हर धर्म शास्त्री शब्दों को तोल कर दुकान

चला रहे हैं 

शब्दों को चांदी विन शब्दों को सोना कहा जाता है

परन्तु सोना छोड़ यहां इंसान चांदी अपनाता है ।

पर चांदी का रखरखाव कम ही कर पाते हैं 

इसलिए हम चांदी के धोखे अन्य धातुओं से काम चलाते हैं 

भाईसाहब बहिनें क्यों न हम शब्दों कि मर्यादा को समझें 

और अंत समय हंसते हंसते भवसागर पार कर लें 

इसलिए में कहता हूं दुनिया में हम पानी के बुलबुले जैसे हैं 

अच्छा बोलों कम बोलों आगे पीछे का सोचों..


यह कविता आपको कैसी लगी कमेंट कर राय दिजियेगा।




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Mahendra Singh s/o shree Babu Singh Kushwaha gram Panchayat chouka DIST chhatarpur m.p India

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