शांती निकेतन मनमीत कविता

 मन उड़ उड़ वहां जाता

पहुंच कर

वहीं के गीत गाता

सुबह शाम अंधेरे में

उजले में,रात में अकेले में

नहीं घबराता

वहीं पहुंच जाता

और ऊंचे ऊंचे पहुंच, गमलों में क्यारियों में

खिलते फूलों के साथ

घूमते भंवरों के साथ

मस्त हों नाचने लगता

गाने लगता

तब इसी नाच गाने के बीच

मन को मनमीत के पद चाप सुनाई देते

तब और तेज गति से

और तेज आवाज में

नाचने और गाने लगता

जब मन मीत सामने मिल जाते

तब यह पापी मन

नाच गाने बंद कर

चुपचाप यह अलौकिक रूप

व अलौकिक आनन्द आत्मा कि और

पी पी कर उतारने लगता

ऐक टक अपलक

निहार निहार

अनोखी लगन से 

यह अनोखा स्नेह

मन का उनके लिए

बेहाल बन जाता

तब मीत चल देते

मन आत्मा कि लगन से घबराकर

और मन आत्मा से बात कर

पुनः अनोखी मुस्कुरा हट से

नाचने लगता धूम मचा देता

मन दिल दिमाग में

एक अनोखा आनन्द

जिसकी कल्पना करना

लोहे के चने चबाना जैसा

औरों को जो यह मन

रोज रोज नए नए हट कर

लूटा करता

चुपचाप ऐक अंजाना

शांती निकेतन का निर्माण

इस मिट्टी के तन में किया करता।।


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Mahendra Singh s/o shree Babu Singh Kushwaha gram Panchayat chouka DIST chhatarpur m.p India

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