एलियन कि बस्ती परिकल्पना





जून के पहले सप्ताह में गर्मी अपना असली रूप दिखाती है दिन का पारा पचास डिग्री से उपर कहीं कहीं चला जाता है ऐसे में एसी,कूलर, पंखे, बेचारे मजबूर होकर गर्म हवा उगलने लगते हैं कुछ तो गर्म होकर जल जाते हैं या फिर कुछ भीषण गर्मी में अपने आप को एकाकार कर  लेते हैं खैर दिन तो कैसे भी कट जाता है परन्तु रात्री में ठंडक नहीं हों तब नींद हजारों कोश दूर रहकर पास नहीं आतीं सारी रात पसीना से नहाएं हुए करवट बदल कर रात गुजारने पड़ती है परन्तु कुछ लोग तो खुले आसमान में चांद तारों को निहारते हुए खटिया पर मच्छर दानी लगाकर नींद लेना पसंद करते हैं में ऐसे ही एक रात छत पर खटिया पर लेटकर चांद असंख्य तारे निहार रहा था कुछ टूटकर रोशनी बिखरते हुए तारों को देख रहा था आकाश गंगा को देखता हुआ कब नींद के आगोश में समा गया पता ही नहीं चला  शायद एक झपकी ही लें पाया था तभी किसीने कि मधुर ध्वनि सुनाई दी थी बेटा मोहन  देख में तुझे लेने आया हूं मेरे कानों में यह आवाज तीन बार सुनाई दी थी में जाग गया था मैंने देखा मेरी खटिया के बगल में एक विचित्र प्राणी खड़ा था जिसकी देह कि रूप रेखा न तों इंसान से मिलती थी न ही जानवर से उसका मुंह कुछ नुकिला था मतलब पंछी कि चोंच जैसा बाहर निकल रहा था उसके कंधे पर मांस नहीं था  हड्डी ही थी जिसके उपर पतली सी पारदर्शी खाल कि परत जमी हुई थी उसका एक हाथ दूसरे हाथ से बड़ा था वह भी सूखी लकड़ी जैसा दिखाई दे रहा था पेट तो दिखाई नहीं दे रहा था और नीचे का धड़ भी कुछ ऐसा ही था मुझे लगा कि मैं सपने में तो नहीं था तभी तो मैंने अपनी ख़ुद कि चिकोटी काटी थी अब यकिन हों गया था कि मैं जागृति अवस्था में था ।<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-3380000341731815"
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मैंने डर के कारण खटिया पर से उठकर भागने लगा चढ़ाव तक पहुंचा ही नहीं था तभी वह फुर्ती से आगे खड़ा हो गया था उसने कहा था डरो मत मोहन देखो तुम्हें लेने आया हूं !
पर आप हैं कौन मैंने हकलाते हुए कहा
तुम्हें तुम्हारे सभी सवालों का  जवाब अपने आप मिल जाएगा उसने कहा फिर मेरे चेहरे पर लम्बे हाथ का पंजा घुमाया था अब मैं सम्मोहन में चला गया था कुछ पलों बाद एक यंत्र छत पर उतर गया था जो न तो हेलीकॉप्टर था न ही हवाई जहाज उसकि बनावट झौपड़ी जैसी थी चारों ओर दीवार खिड़कियां मुख्य गेट अन्दर बैठने के लिए फूल कि पंखुड़ियों जैसे कोमल सोफ़ा सेट था उसी के सामने बड़ी स्किन का टेलीविज़न लगा था जिसमें आकाश गंगा कि सड़कें थी धरती जैसी सड़क सिग्नल दिखाई दे रहे थे खैर उसने मुझे विशेष कपड़े पहनने को दिए थें  उन्हें पहनकर यकिनन मेरा भार हल्का हो गया था।
उसने कहा था मोहन यह कपड़े धरती के गुरूत्वाकर्षण से दूर हैं यह पहनते ही गुरूत्वाकर्षण के सारे सिद्धांत काम नहीं करते हैं फिर मुंह से उसने यंत्र को कमान दी थी कुछ ही छड़ों में यंत्र लाखों किलोमीटर स्पीड से हवाई सड़क पर सरपट दौड़ रहा था संभवतः उसमें इंजन था या नहीं पहिया थें या नहीं कहना मुश्किल था वह तो आवाज रहित था में खिड़की से झांक कर देख रहा था आकाश गंगा के गृहों के नाम संकेत तख्ती पर लिखें हुए थे चोराहों पर जैसे मंगल ग्रह शनि ग्रह आदि परन्तु एक बात गोर करने वाली थी रास्ते में अन्य झौपड़ी जैसी कारें आ जा रही थी अब मैं अरबों किलीमीटर धरती से दूर था खिड़की से झांकता हुआ में अपनी प्यारी धरती को खोज रहा था परन्तु वह दिखाई नहीं दे रही थी बस वहां पर तों सिर्फ नीला आसमान ही नज़र आ रहा था सहसा मुझे ख्याल आया था कि आक्सीजन के विना में कैसे जीवित हूं मेरे ख्याल को शायद वह पड़ रहा था तभी तो उसने कहा था मोहन तुम्हें जो विशेष वस्त्र पहनेने को दिए थे उसमें आवश्यकतानुसार सभी गैसों का उत्सर्जन उत्पन्न होता है समझें यहां तक कि तुम्हें भुख पानी कि जरूरत महसूस नहीं होगी ।
लगभग अरबों किलीमीटर दूर जानें के बाद हम हरे गृह में पहुंच गए थे दूर से ही जंगल जल पहाड़ दिखाई दे रहे थे वातावरण धरती जैसा मिलता जुलता दिखाई दे रहा था बड़ी बड़ी इमारतें दिखाई दे रही थी आखिरकार वह झोपड़ी यान एक छत पर उतर गया था देखता हूं कि बहुत सारी लड़कियां स्वागत के लिए तैयार हो कर हमारा स्वागत करने को तैयार थीं पंछी जैसी चोंच वाले सज्जन ने देह के उपर जिसमें हड्डी पतली सी झिल्ली दिखाई दे रही थी उसे उतार दिया था वह तों खूबसूरत मर्द था बाहर निकल कर हम लिफ्ट में सवार हो गए थे सैकड़ों मंजिल नीचे जा कर लिफ्ट रूक गई थी कुछ देर पैदल चलने के बाद हम हाल में प्रवेश कर गए थे जहां पर बहुत सारे अफ़सर बैठे हुए थे सभी ने उठकर हमारा अभिवादन किया था पता चला कि वह एलियन का राजकुमार था  कुछ देर दुसरी भाषा में कुछ देर उनकी मिटिग हों रहीं थीं फिर राजकुमार ने हिंदी भाषा में कहां था मोहन तुम्हारा हरे गृह में स्वागत है दरअसल हमे तुम्हारी भाषा में एलियन कहते हैं कारण हम कभी कभी ही तुम्हारे गृह पर जाते हैं तुम्हारे गृह के विज्ञानियो ने हमें खोजने के लिए बहुत जतन कर लिया है परन्तु हमें नहीं खोज पा रहे हैं कारण अभी भी तुम मानव हमसे हजारों साल पीछे हों और रहोंगे क्यों कि तुम्हारी बहुत सारी भाषाएं धर्म जाति पातीं मानवों को कभी भी आगे बढ़ने नहीं देती ?
आकाश गंगा कि हज़ार परत है हमारा यह हरा गृह अंतिम परत पर हैं दरअसल पहले हम तुम्हारे गृह के बहुत नजदीक थे हम तों आपस में शादी विवाह मतलब रिश्ते दार बनना चाहते थे परन्तु तुम पृथ्वी के मानव बहुत ज्यादा चालाक थें तुमने सीक्रेट मिशन चला कर हमारे गृह को खोजने के लिए बहुत सारे यान लगा दिए थे कुछ ने तो हमें खोज भी लिया था परन्तु हमारे सुरक्षा कर्मी राडार ने उन्हें घेर कर पकड़ लिया जो आज भी हमारी क़ैद में हैं  आगे में नहीं देख पाया था क्योंकि मम्मी चाय लेकर पलंग के पास खड़ी हुई रजाइ खींच रहीं थीं काश मम्मी थोड़ी देर बाद आतीं तब मैं हरे गृह को ओर देख पाता परन्तु स्वप्न तो स्वप्न होते हैं 
 समाप्त 

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Mahendra Singh s/o shree Babu Singh Kushwaha gram Panchayat chouka DIST chhatarpur m.p India

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