साइकिल





मग्न लाल शाम को झुग्गी आया था टिफिन का थैला के साथ एक कपड़े कि थैली में कुछ सब्जियां थी उसने उसे घरवाली को पकड़ा दी थी फिर वह हाथ मुंह धोने लगा था घरवाली ने सब्जियां निकाल कर देखी थी जिसमें आलू और हरी मिर्च धनिया ही थी उसने मग्न लाल से कहां था टमाटर नहीं लाएं आलू बिना टमाटर के अच्छे नहीं लगते हैं टमाटर से स्वाद बढ़ जाता है ।
 टमाटर बहुत ही महंगे हैं कमला अस्सी रुपए किलो खरीदने कि हिम्मत ही नहीं पड़ती है ऐसा करो आलू को उबालकर हरी मिर्च धनिया नमक कि चटनी बना दें स्वाद अपने आप ही बड़ जाएगा  मग्न लाल ने प्रतिउत्तर में कहा था ।
कमला :-  सब्जी वाला तेल खत्म हो गया था दुकान पर लेने गई थी पोने दो सो रुपए दाम एक किलो का था में एक पांव लेकर आ गई कितना दिन चलेगा वह अपनी ही धुन में बड़बड़ाने लगी थी ।
मग्न लाल:- मुंह में कुल्ला करते हुए कमला महंगाई दिन पर दिन अमरबेल कि तरह पनप रही हैं यह हमारे जैसे कमजोर वृक्ष को कभी भी हरा भरा नहीं होनी देगी उसने दार्शनिक लहज़े से अपना तर्क दिया था ।
मग्न लाल दिहाड़ी मजदूर था सारे दिन पसीना वहां कर तीन सो रूपए ही कमा पाता था पहले कमला भी काम पर जाती थी उसे दो सो रुपए मजदूरी के मिलते थे दोनों के पांच सो रूपए हो जातें थें इन रूपयो से घर खर्च भी चल जाता था व फिर कठिन समय के लिए कुछ बचत भी हो जाती थी चूंकि कमला पेट से थी सातवां महिना चल रहा था फिर शरीर से भी कमजोर थी ऐसे में मग्न लाल ने उससे काम न कराने का फैसला किया था  हालांकि  तीन साल का  बेटा था उसी को पड़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाने का इरादा था पर कमला कब गर्भवती हो गई थी पता ही नहीं चला था ऐसे में दोनों पति पत्नी ने भगवान का प्रसाद समझकर एक और बच्चा पैदा करना ही उचित समझा था फिर हम दो हमारे दो बेटी कि चाह थी ।
 
मग्न लाल हाथ मुंह धोकर खटिया पर लेट कर कमर सीधी कर रहा था उसने कमला से पूछा था पप्पू किधर है पप्पू बेटे का नाम था  पड़ोस में बच्चों के साथ खेल रहा है आता ही होगा उसने  चूल्हा में आग जलाते हुए कहा था ।
थोड़ी ही देर में पप्पू आ गया था आते ही अपने नन्हे नन्हे पैरों से खटिया पर चढ़ने कि कोशिश कर रहा था पर सफल नहीं हो पा रहा था मग्न लाल करवट बदल कर वात्सल्य भाव से देख कर मन ही मन खुश हो रहा था फिर उससे रहा नहीं गया था मेरा बेटा मेरा राजकुमार मेरा लल्ला  कहते हुए  एक हाथ से उठाकर अपनी छाती पर पप्पू को बैठा दिया था पप्पु पिता कि छाती पर ही लेट गया था वह कभी छाती के वालों पर हाथ फेरता था तब कभी गालों पर गर्दन पर  कमला का चूल्हा जल गया था कंडो को इधर उधर चमीटा  से कर के उसके अंदर साबुत आलू भर रही थी बीच बीच में तिरछी नजर से बाप बेटे के प्यार को देखकर आनंदित हो रही थी उसने आलू भर कर उन्हें गाड़ दिया था फिर वह आटा गूंथ ने लगी थी सहसा पप्पू ने तोतली भाषा में कहा था पप्पा पप्पा मेले पप्पा मुझे साइकिल चाहिए पप्पा पप्पा ला दो न  मग्न लाल के कुछ कहने से पहले ही कमला ने कहा था ला दो न कब से कह रहा है पड़ोस के बच्चे के पास हैं उसे देखकर बहुत मचलता है देख कमला तूं पेट से हैं पता नहीं कब पैसा कि जरूरत पड़ सकती है कुछ पैसा तेरे पास ही रखा है उसे रखा ही रहने दें आगे काम आएगा आज पिता जी का भी फोन आया था कुछ रूपए बैंक खाते में डालने का कह रहे थे मैंने तो कह दिया कमला पेट से हैं में अकेला ही काम पर जा रहा हूं अभी नहीं में रूपया दे सकता तब पिता जी ने क्या कहा वह तो खुन्नस खा गए होंगे कमला ने कहा था ।
नहीं री उन्होंने कहा था बेटा बहू का ख्याल रखना दो पैसे बचा कर रखना परदेश का मामला है कोई किसी का नहीं होता मैं अपना काम निकाल लूंगा बहुत समझदार है हमारे सास ससुर जी भगवान ऐसे सास ससुर सभी को दें कमला ने कहा था ।
दोनों ही के बीच बातों का आदान प्रदान हों रहा था दुनिया जहान कि बातें हों रहीं थीं कमला रोटी पका चुकी थी अब चटनी पीसकर भर्ता बनाने लगी थी उधर पप्पू साइकिल साइकिल कि धून लगाकर पिता कि छाती पर ही सौ गया था शायद सपनों कि दुनिया में पहुंच गया था जहां पर वह साइकिल पर सवार होकर झुग्गी बस्ती में घूम रहा था शायद वह साइकिल पर सवार होकर आसमान में उड़ रहा था शायद वह अपने वाल सखा से कह रहा था देखो देखो मेरे पप्पा साइकिल लाएं हैं कैसी अच्छी चल रही है अच्छी हैं न तभी तो वह नींद में मुस्कुरा रहा था सच सपने कि दुनिया ही अलग है जिनके जागते हुए सपने पूरे नहीं होते जैसे कि कार खरीदने, महंगा लेपटॉप या फिर मोबाइल फोन, घर, बंगला, उन्हें यकिन मानिए नींद के सपनों में यह सब चीजें मिल जाती है जागने पर कुछ मधुर स्मृतियां दिमाग के कंम्पयूटर में सेब हों जाती है जिसकी रील हमारे मस्तिष्क पटल पर चलती रहतीं हैं और हम ताजी उर्जा के साथ आशावादी दृष्टिकोण रखकर कड़ी मेहनत कर अपने सपनों को साकार रूप देने में सफल हो जाते हैं पर यह कुछ ही कर्म शील व्यक्ति को नसीब होता है।
यूं तो बाहर मास ही त्योहार हैं जैसे कि होली, दीपावली रक्षाबंधन आदि पर दीपावली त्यौहार का अलग ही महत्व है चूंकि ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन धन दौलत कि देवी लक्ष्मी साफ स्वच्छ घर को निर्मल तन मन को देखकर अपनी कृपा दृष्टि बनाएं रखतीं हैं इस त्योहार कि महीने से ज्यादा समय से तैयारी होने लगती है चूंकि साफ सफाई पुताई का काम ज्यादा निकलता है ऐसे में कारपेंटर , प्लंबर, पेंटर , दिहाड़ी मजदूर को काम कि कमी नहीं रहती है मुंह मांगे दाम मजदूरी मिल जाती है ।
    उसके घर संसार में नन्ही सी परी बेटी ने पदार्पण किया था शायद वह उसके जीवन में लछमी बन कर आई थी तभी तो मग्न लाल को नियमित काम मिल गया था सहर के नगर सेठ का बंगला था उसकि साफ सफाई पुताई हों रहीं थीं मग्न लाल कि मेहनत ईमानदारी को देखकर सेठ ने उसे घर कि रखवाली के लिए रख लिया था अब वह सारे दिन काम करने वाले मजदूरों पर नजर रखता था छुट्टी होने पर मैन गेट पर सभी मजदूरों के टिफिन बॉक्स झोले चेक करता था मतलब वह मजदूरों कि नजर से घर का मालिक ही था ।
बंगला में से पुराना सामान निकाल कर कवाड़ में बेचा जा रहा था उसी सामान में बच्चों कि साइकिल थी मग्न लाल कि नज़र बार बार साइकिल पर जा रहीं थीं सेठ जी नजदीक ही खड़े हुए थे उन्होंने नजर को ताड़ लिया था तभी तो मुस्कुराते हुए कहा था मग्न तेरा बच्चा छोटा सा है न 
जी जी सर 
तब तूं यह साइकिल ले जाना 
पर सर उसकी बात खत्म भी नहीं हुई थी सेठ जी ने हंसते हुए कहा था हां यह महंगी साइकिल थीं जिसके लिए खरीदी थी वह तो अमेरिका में हैं बेटा बहू हमेशा के लिए वहीं सेटल हो कर रहने लगे हैं फिर में भी अभी दीपावली पर कुछ ही दिनों के लिए यहां पर आया था घर कि साफ सफाई पुताई करा कर वापस चला जाऊंगा तुम्हें ही यह बंगला देखना है ऐसा करो तुम झुग्गी बस्ती से सर्वेंट क्वार्टर में रहने लगना दीपावली के बाद रहने आ जाना ।
शाम को मग्न लाल साइकल के साथ झुग्गी बस्ती पहुंचा था पप्पू ने दूर से ही पिता और साइकल को देखकर हुए नन्हे पैरों से दौड़ लगा दी थी यह कहते हुए कि मां मां देखो पप्पा साइकिल ले आएं है मेरे अच्छे पप्पा वह मग्न लाल के पैरों में लिपट कर खिल खिला कर हंसने लगा था क्योंकि आज सारे जहां कि खुशियां उसकी जो मुठ्ठी में थी। 
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Mahendra Singh s/o shree Babu Singh Kushwaha gram Panchayat chouka DIST chhatarpur m.p India

1 Comments

  1. यह कहानी दिहाड़ी मजदूर कि आर्थिक परेशानी को दर्शाती हैं जो कि न ही अच्छा खाना खा सकता है और न ही बच्चे कि साईकिल कि ख्वाइश पूरी कर सकता है ।

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