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काल गर्ल बैब स्टोरी भाग 07

 उसने चाय बना दी थी दोनों ही नीचे चटाई पर बैठकर चाय कि चुस्कियों लें रहें थें व एक दूसरे को निहार रहे थे कुछ देर बाद विनय कुमार ने कहा था कि आप बुरा नहीं माने तब में आपसे निवेदन करना चाहता हूं कि मेरी पेंटिंग जो आप देख रहीं हैं वह अधूरी है मैं उस पेंटिंग को आपके सहयोग से ही पूरा कर पाऊंगा जैसे कि गुलाबी शुष्क अधर , उन्नत वक्ष,पतली कमर,कमर वह फिर कुछ देर के लिए नग्न हो सकती है मेरा मतलब.... करूणा यूं तो सैकड़ों बार अलग अलग पूरूसो के साथ नग्न हो चुकी थी लेकिन उसे न जाने क्यों आज शर्म आ रही थी करूणा ने सालीनता से जी नहीं  विनय कुमार को शायद जी नहीं जबाब कि उम्मीद नहीं थी उसका चेहरा उदास हो गया था कुछ सोचने लगा था तभी करूणा ने कहा था कि आज नहीं फिर कभी अच्छा आज आप मेरे साथ मेरे फ्लेट पर चलेंगे सहसा ऊसे याद आया था कि आज तो उसकी होटल ब्लू रोज में फुल नाइट कि बुकिंग फुल सर्विस के साथ थी पैसा भी लाखों मिल रहा था उसने मोबाइल निकाल कर संबोधित पुरूष को तीन दिन बाद मिलने का यू कहकर कि वह महीने से हैं जैसा आप चाहते हैं बैसी सर्विस नहीं दे पाऊंगी इसलिए तीन दिन बाद व्हाट्सएप पर मैसेज भेज दिया था प्रत

दलदल मजबूर लड़के कि कहानी


वह एक वर्षांत कि रात्रि थी मेघ गर्जन करते हुए कड़कती बिजली के साथ घनघोर वर्षा कर रहे थे ऐसे ही रात्रि में परेश होटल के कमरे में एक युवा शादी शुदा महिला के साथ लिपटा हुआ था  महिला के कठोर नग्न स्तनों का नुकिला हिस्सा उसकी छाती पर गढ़ रहा था वातावरण में गर्म सांसें के साथ तेज सिसकारियां निकल रही थी सांगवान का डबल बैड पलंग पर मोंटे मोंटे गद्दे कांप रहे थे पलंग का शायद किसी हिस्से का नट बोल्ट ढीला था तभी तो कि कुछ चरमरा ने कि आवाज आ रही थी  साथ ही महिला के मुख से और तेज हा ओर तेज शाबाश ऐसे ही ... .. आह आह सी सी बस बस अब नहीं छोड़ो टांग दर्द  कर रही है बस बस 
पर परेश  धक्के पर धक्का दे रहा था फिर वह भी थम गया था अपनी उखड़ी सांसों के साथ चूंकि परेश पुरूष वैश्या था उसकी अमीर हर उम्र कि महिला थी वह इस धंधे में नया नया आया था  पर जल्दी ही अमीर महिलाओं के बीच फेमस हो गया था उसका कारण था उसका सुंदर सुडौल शरीर और बात करने का सभ्य।  ढग फिर वह अपने काम को पूरी इमानदारी से निर्वाह करता था मतलब उसकी ग़ाहक को किसी भी प्रकार कि शिक़ायत नहीं रहती थी ।
खैर सांसें थमते ही दोनों अलग हो गए थे महिला ने मद्धम रंगीन रोशनी  रोशनी का स्विच आन कर दिया था नग्न शरीर पर चादर डालकर सिगरेट सुलगा ली थी साथ ही 
सिगरेट आफर कि थी जिसे परेश ने बड़ी शालीनता से जी नहीं मेम में सिगरेट नहीं पीता ।
बहुत अच्छा अच्छे लड़के हों सभ्य और शुशील भी हों और हां बिस्तर पर बाप रे बाप पूरा थका ही दिया रोम रोम तृप्त कर दिया यह सुख तो मेरा पति कभी नहीं दे पाया बैसे भी हमारे उनके पास समय कि बहुत बहुत कमी है वह हमेशा बिजनेस टूर पर बाहर रहते हैं अपनी सेक्रेटरी
के साथ और मैं भी अपनी कंपनी चलाती हूं वह कहें जा रही थी साथ ही सिगरेट के कश खींच रहीं थीं फिर टेबल  पर हाथ बढ़ाकर  उसने पर्स उठाया था उसमें से एक मोटी रूपए कि गड्डी परेश को दी थी अब तुम जाओ कहा था अरे हा मिस्टर खन्ना को तुम्हारा<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-3380000341731815"
 नम्बर दिया है वह पिता बनने में असमर्थ हैं मेरे कंपनी के क्लाइंट है जरा अच्छे से बात करना 
परेश माया नगरी इन्दौर कुछ सपनों के साथ आया था चूंकि वह सूदूर दूर गांव से आया था परिवार कि माली हालत ठीक नहीं थी बड़ी मुश्किल से उसने बी काम तक शिक्षा ग्रहण कि थी बैंकिंग सेक्टर में अनेकों जगह इंटरव्यू दिया था पर कही भी अच्छी नोकरी ंंनहीं मिल रहीं थीं हालांकि एक दो जगह पार्ट टाइम जॉब कर रहा था पर उस तनख्वाह से जैसे कि फ्लेट का किराया दैनिक खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था  कुछ हाथ उधारी भी हो गई थी ऐसे हालात में वह करें तो क्या करें समझ में नहीं आ रहा था एक दोपहर वह तंगहाली से कैसे बचें क्या करें विचार कर रहा था तभी डोर बेल बजी थी दरवाजा खोला था देखा कि फ्लेट कि मालकिन थी जो एक कसे हुए बदन कि मालकिन थी जो बेहद ही तंग पोशाक पहन कर आई थी उसके उभार पारदर्शी पोशाक में दिखाई दे रहे थे तंग जींस में कूल्हे बहुत कुछ कह रहें थें उम्र में वह उससे दो गुना बड़ी थीं वह क़ो़ध    में थी उसके नथुनों फड़फड़ा रहे थे   हालांकि उसका दोष नहीं था क्योंकि पिछले तीन महीने का  किराया बाकी था।
मकान मालकिन जो एक शहर के जाने माने विल्बर कि बीबी थी उसने बाहर से ही हाथ नचाकर कहा था क्या हुआ किराया कब देगा ?
परेश :- आप अन्दर आकर बात करें  
मकान मालकिन :- जिसके एक हाथ में मोबाइल था व दूसरे में पर्स था  झटकें से अन्दर प्रवेश कर सोफे पर बैठ गई थी लो आ गई अब बोल किराया कब देगा ।
परेश :- जी थोड़ा और समय दिजिएगा में अच्छी नौकरी तलाश कर रहा हूं फिर दो जगह पार्ट टाइम एकाउंट का काम कर रहा हूं  ।
मकान मालकिन :- अब समझी पहले तुम नौकरी तलाश करोंगे फिर दो तीन महीने काम करोगे फिर ..... अच्छा सब कुछ हराम का मिल गया है जेसे कि फर्नीचर,सोफा, पलंग, ए,सी आदि 
परेश :- फ़िजर से ठंडी पानी कि बोतल ले आया था विनय से कहा था आप शांत हो जाइए पानी पीजिए ज्यादा चिल्ला चोट मत करें पड़ोसी सुन रहे होंगे दरवाजा खुला हुआ है ।
मकान मालकिन :- फुर्ती से उठकर दरवाजा मेन डौर बंद कर वापस आ बैठी थी हां अब बोल किराया कैसे देगा ।
परेश :- हकलाते हुए बोला था जी मकान ऐग़ीमेट के अनुसार मेरा तीन महीने का एडवांस जमा है ।
मकान मालकिन :- अब समझी हिसाब किताब बरावर चल अपना बैग लेकर रफूचक्कर हो ठीक है ।
परेश,:- देखिए ऐसा मत किजिए आप रहम करें इश्वर ने आप को बहुत कुछ दिया है बड़े लोग हैं ।
मकान मालकिन :- तब क्या सब कुछ दान कर दूं कहता है बड़े लोग हैं वह कुछ समय खामोश रहीं थीं फिर कहां था कोई लड़की पर पैसा तो नहीं लुटा रहा मेरा मतलब कोई भी गर्ल फ्रेंड ।
परेश :- जी मेरी कोई भी गर्ल फ्रेंड नहीं है ।
मकान मालकिन :- अच्छा तब तो तू अभी तक कुंवारा ही हैं फिर शरीर कि गर्मी कैसे निकालता है मेरा मतलब अपना हाथ बाथरूम का साथ अपनी बात पर वह खुद ही हस पड़ी थी जीभ ओंठ पर फेर रहीं थीं चेहरा कामुक हो गया था फिर कहां लगता है तेरे कंवारे पन कि परीक्षा लेनी होगी अगर तू पास निकला तब तेरा माफ 
अब वह परेश के उपर सवार थी ओंठ से  ओंठ मिल गया था एक एक करके देह निर्वस्त्र हो रहें थें उसके कठोर स्तन जो काफी बड़े बड़े थे परेश चूस रहा था कभी उसकि जीभ जांघ के बीच में होती तब कभी छातियों पर पर कभी ...
शरीर जल रहें थें वासना कि सिसकारियां निकल रही थी फिर वह मदमस्त यौवन सागर में गोते लगा रही थी कारण बेहद कम उम्र का जो कुंआरा लड़का मिल गया था   खैर वह हर प्रकार से तृप्त हो गई थी उसने तृप्ति से भरा परेश के माथे का चुंबन लिया था व खुश हो कर कहा था सच मुच तुम वर्जन थें मतलब कुंआरे थें तुम्हारा किराया माफ और हा ऐसे ही खुश करते रहना पर खबरदार अगर किसी से भी चर्चा कि तब बहुत बुरा हाल करूंगी ।
वह नथूने फड़फड़ाते हुए आइ थी व वापस खुश हो कर गयी थीं ।
परेश के मन में अपराध बोध था उसका मन कहता कि यह सब क्या कर बैठा तू वह तेरे से  ...... बहुत बड़ी है संभव हो तेरी मां कि उम्र के बराबर हों छी छी वह बाथरूम में समां गया था फिर अपने बदन को साबुन से मल मल कर धो रहा था उसे ऐसा लगता था कि शायद उसकी देह फिर से पवित्र हो दूसरी ओर किराया माफ होने का संतोष भी था किसी ने सच ही कहा है कि इंसान मजबूरी में ....
फिर कुछ दिन बाद उसका फोन आया था किधर है तूं 
जी मुझे नोकरी मिल गई है ड्यूटी पर जा रहा हूं परेश ने कहा था ।
तब आज छुट्टी ले समझा  में आ रहीं हूं 
पर मेम महीने का आखिरी चल रहा है बैक का आडिट हो रहा है कैसे छुट्टी लूं 
कुछ भी बहाना बना समझा में आ रहीं हूं फिर फोन कट हों गया था मजबूर होकर उसने बैंक मैनेजर को फोन किया था जिसने छुट्टी न देने को कहा था ।
मकान मालकिन एक युवा महिला के साथ आ गई थी जो देखने में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी दुवला पतला तरासा हुआ बदन सुतवा नाक कंटीली ग़ीवा  बढ़ी बढ़ी आंखें मध्यम आकार का कठोर सीना   पतले पतले गुलाबी होंठ जो उनकी किटी पार्टी कि मेंबर थी साथ ही शराब कि बोतलें भुना हुआ चिकन लेकर आई थी फिर क्या पैग बनाए जा रहे थे  थोड़ी देर बाद मकान मालकिन बड़बड़ाने लगी थी आज तीनों मिलकर एंज्वाय करेंगे अरे हमारे बीच यह वस्त्र इनका क्या काम  इंसान धरती पर नंगा ही आता है ही ही ही ........... परेश यह मेरी सच्ची सहेली है इसका बहुत बड़ा कारोबार हैं अनेकों फेक्ट्री है बड़े बड़े बंगले हैं पर फिर भी हम अमीर औरतो को संभोग सुख भरपूर नहीं मिलता कारण हम अपने पति के लिए घर कि सजवाट है हमारे पतियों के पास मांडल ज़माने कि खूबसूरत महिलाओं का स्टाफ है वह  कमीनें उन पर ही अपनी जवानी खर्च करते हैं उन्हें ही तृप्त करते हैं कभी कभी बचा हुआ जूठन हमें मिल जाता है साले सब के सब कमीनें हैं वह बड़बड़ाने लगी थी अब हमने भी अपने लिए रास्ता तलाश कर लिया है किराया का मर्द ही ही ही .....
दोनों ही भूखी शेरनी कि तरह उस पर टूट पड़ी थी परेश बारी बारी से उन्हें हर प्रकार से तृप्त कर रहा था थक कर चूर हो गया था गिड़गिड़ाने लगा था थोड़ा तो रहम करो बस बस पर वह कहां मानने वाली थी क्योंकि उनकी अधूरी इच्छाएं उन्हें मजबूर कर रहीं थीं ।
दोनों महिलाएं अब वापस जा रहीं थीं दूसरी महिला ने पर्स से मोटी रूपए कि गड्डी परेश पर उछाल दी थी सुनो तुम बहुत अच्छे हो सम्पूर्ण मर्द हो हम दोनों को खुश कर दिया यह रूपए तुम्हारा इनाम हैं हां मेरी सहेली मिसेज भट्ट का फोन आएगा उन्हें तुम्हारा नम्बर दे दिया है  टाइम सेट कर लेना अच्छा खासा इनाम मिलेगा ।

परेश बहुत जल्दी ही कामुक धनाढ्य वर्ग कि महिलाओं में लोकप्रिय हो गया था उसका कारण था उसका जांघों के बीच लटकता हाड़ मांस का टुकड़ा जो समय पर बेहद ही सख्त मोटा हो कर अपना काम बहुत ही खूबसूरत ढंग से करता था मतलब समय के लिहाज से उसे हर जगह पर भरपूर ईनाम मिलता था कहीं कहीं उसकी सोच से भी आगे अब उसका खुद का फ्लेट था कार थी बैंक बैलेंस था गांव भी भरपूर रूपए भेजता था पर उसे सुकून नहीं था कारण उसे इस धंधे से घिन आने लगीं थी उसका कारण था कि कभी कभी कोई महिला ग़ाहक अजीब अजीब तरह का व्यवहार करती थी कुछ तो रो रो कर अपने पति कि याद करती मतलब बहुत प्यार करती थी फिर बिना कुछ किए उसे इनाम दे कर रफूचक्कर कर देती थी कुछ शराब में टल्ली हो कर उसे ही गालीया देने लगती थी आदि 
ऐसा ही एक रात्रि का मंजर था वह भी वर्षांत कि रात्रि थी आकाश में मेघ गर्जन करते हुए जौरों से अपनी बूंद प्यासी धरा पर बिखरे हुए थे वातावरण में कहीं कहीं झिगूर कि आवाज आ रही थी दूर कहीं मेंढक कि टर टर कि आवाज आ रही थी कही दूर कुत्ते भौंक रहे थे कालोनी में गार्ड टार्च छाता लेकर जागते रहो फिर लाठी रोड पर पटकते हुए सीटी बजा रहा था और वह लेक व्यू के किनारे आलीशान बंगला में ईनाम कि चाहत में एक भीमकाय महिला जिस के शरीर पर अतिरिक्त चर्बी थी जिसके  मोंटे मोंटे ओंठ थें से डोल सीना था मोंटे मोंटे हाथ थें कुल मिलाकर वह पहलवान दिख रही थी उसका ऊपर का शरीर औरत का था पर अंदर से पूरी तरह से मर्द थी वह परेश से लिपटी हुई थी जो अजीब मांग कर रही थी वह उसे झंझोर रहीं थीं  उसके नथुनों से तेज तेज सांस ंंनिकल रही थी उसकी बात न मानने पर उसे गालीया दे रहीं थीं गालों पर थप्पड़ जड़ रहीं थीं फिर क्या परेश को समझोता करना पड़ा था उसके अंदर गर्म कड़क हथोड़े जैसा मांस का टुकड़ा समां गया था दर्द से कराह निकल गई थी पर मजबूर था जैसे तैसे उस औरत का गुबार शांत हुआ था आज परेश को अपने ऊपर घिन आ रही थी नथूने में अजीब तरह कि गंध समा गई थी खैर घर पर आ कर एक बार फिर से मल मल कर नहाने लगा था साथ ही इस दलदल से बाहर निकलने का द्वार खोज रहा था नहाने के बाद उसने सोसल मीडिया,सभी साइट से अपने आप को ब्लाक किया था फिर मोबाइल सिम कंपनी के कस्टमर केयर से मोबाइल फोन गिर जाने का बहाना कर नम्बर बन्द कर दिया था आज वह दल दल से बाहर निकल आया था उसे गहरी नींद आ गई थी एकदम शांत ......
कुछ सालों बाद पता चला कि वह गांव वापस चला गया था जहां उसने गरीब परिवार कि लड़की से व्याह कर अपना घर बसा लिया था अब वह शहरों कि चकाचौंध भरी जिंदगी के दल दल से निकल कर खेती बाड़ी कर माता पिता के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रहा है इंसान को अपनी देह का व्यापार नहीं करना चाहिए परन्तु मजबूरी सब करा लेती है।
 

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Comments

  1. दलदल यह कहानी मौजूदा समाजिक ताने बाने पर लिखी गई है इंसान पैसे के पीछे भाग रहा है वह अपने परिवार पत्नी को समय नहीं दे पा रहा है ऐसे में पत्नी अपनी देह कि जरूरत कि पूर्ति इधर उधर करती है

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तुम कहां हो

 तुम कहां हो? कहां नहीं हों ? दोनों अनंत काल से चले आ रहें शाश्वत प़शन है इनके उत्तर भी अनंत काल से  शाश्वत हैं। प़भु के बगैर होना तो दूर कल्पना भी संभव नहीं तुम सर्वत्र हो प़भु कण कण में समाए हों प़भु तुम यहां भी हों वहां भी हों आपके बिना कहते हैं कि  पत्ता भी नहीं हिल सकता मंद मंद शीतल पवन नहीं वह सकतीं कल कल करती नदियां नही बह सकतीं हिलोरें मारकर विशाल सागर  अपनी सीमा में नहीं रहता न ही सूर्य अपनी तपिश बिखेर कर हमें रोशनी देता न ही चांद दीए जैसी रोशनी से हमें  शीतलता देता  पूछता हूं प़भु तुम कहां हो। हे प्रभु जब से हम मानव कि अगली पीढ़ी से लेकर  आखिर पीढ़ी तक यह प़शन हमें तबाह किये हुए हैं  बर्बादी के द्वार पर खड़ा किए हुए हैं हे प्रभु प़शन अटपटा सा है पर शब्दों कि गूंज उत्तर के रूप में होती है पर परतीत नहीं होती  हे प्रभु कभी कभी लगता है कि आप हमारे अन्तर मन में हों  तब कभी कभी लगता है कि आप कण कण में हों  तब कभी कभी लगता है कि दीन हीन लाचार अपाहिज मानव  पशु पंछी कि देखभाल करने में  हमें भूल गए हों  लेकिन यह सच है कि प़भु आप तो हो  पर आप कहां हो,??

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अपनी पहचान

 सूर्य दिशा कि पहचान क्या सूरज के उदय होने से हैं सूर्य नही निकलेगा न ही सुबह कि लालमा रहती तब क्या चांद का राज ही रह जाता क्या सूर्य दिशा का पता ही नहीं रहता प़शन है आपसे आपके अतीत से आपके वर्तमान से आपके सुनहरे भविष्य से  जिसे आप संजोए हुए है  सुखद स्वस्थ भविष्य कि कल्पना संजोए हुए है । लेकिन आप दिशा हीन है  मतलब क्या करें कैसे करें  तय नहीं कर पा रहे हैं  तब मैं आपको बताऊं  उसका उत्तर प्रकृति के पास हैं  जैसे कि पर्वत, उसके ऊपर  लहलहाते विशाल पेड़  सागौन , और अन्य  उनके आस पास कुछ छोटे से फूलों के पौधे जिन्हें कहते हैं जंगली  जिस के फूलों से मधुमक्खी लें  जाती है पराग  और हमें देती है मीठी मीठी सी शहद  कया उस मधुमक्खी को दिशा का  पता हैं  जी नहीं  वह तो अपने अतीत को  जिस छतता में उससे जन्म लिया  जिस समूह ने उसे पाला  उसे तो उसका पता हैं  वह सूर्य दिशा को नहीं जानती  फिर भी वापस घर पहुंच जाती है । क्या आपको पता है कि नदी नाले  जंगल पहाड़ को काटकर अपने जन्म दाता समुद्र से मिलकर  अपने आप को आत्मसात कर लेते हैं  लाखो मील दूर से ही वह दिशा हीन होकर  अपने अतीत के पास पहुंच जाते हैं । क्या

चांद और आकाश का प्यार

 सूने आकाश में जब चांद का आगमन होता तब आकाश सौभाग्य शाली हों उठता और गर्व के साथ सीना तान कर बड़ी विनम्रता से कहा करता हम फिर धन्य हो गये  हमारे धीरज ने हमारे विश्वास ने  हमारे आत्मिय प्रेम ने  चांद को मजबूर कर दिया मेरे जैसे काले से भूरे से नीले से  टूटे फ़ूटे बगैर नीव के बगैर सहारे के बेकार से शून्य से  बनें हमसे चांद को मिलने को  और तो और यह भी सुन लो जब चांद आकाश से रूठ कर चला जाता जब भी दुबला पतला हो आ जाता तब यह आकाश रोज नीरवता में चांद को तड़प तड़प कर अपने दामन में लगे गहरे घाव बताता जो न जाने किन किन ने  प्यार और विश्वास के  नाम दिए हैं और जब आकाश कह उठता कि यह घाव भी बहुत प्यारे लगते हैं तब वह चांद जिसे सारा संसार प्यार करता हैं पर गले लगाने को गीत बनाने को त्याग नहीं करता तब आकाश का हौसला जान खुश हो कर कहता मेरे प्यारे आकाश में भी बहुत धोखे खा चुका इस संसार में बहुत कुछ गंवा चुका पर न जाने क्यों तुम्हारा निश्छल प्रेम देख तुमसे मिलने को तुम्हारे साथ रहने को बार बार कहता हैं इससे तुम्हारा विराट त्याग तुम्हारा निश्छल प्यार रोज तुम्हारे पास खींच लाता है और बार बार हम कलंकी  तुम्ह

गीत गाता चल अकेला

 लो मेरे मीत हो गया यह जहां तुम्हारा छोड़ा यह झौपड़ी तुम्हारा जो बना था बसेरा हमारा में न लोटू अब यहां बस दुआ देना ही फर्ज तुम्हारा सबकुछ लूट गया अब क्या हैं न्यारा न्यारा किसे दूं दोष यहां दोषी हैं मन हमारा मेरे जज़्बात मेरा प्यार मेरे हालात ने मारा हैं  यह हृदय तेरा था बेगानो ने लूटा सारा पग पग जमाने ने मुझे ही तो लूटा सारा हर पग जमाने ने मुझे ही तो दुत्कारा  रोज आया तेरे दर पर  खामोशी ने मुझे फटकारा मिलन से हमारे बस दुश्मन होगा जग सारा इससे में चलता हूं इसी में भला हमरा खामोशी या मौत बस मेरा बनेगा सहारा  गंगा सा गीत गुनगुनाते भी न जग सुनें तुम्हारा। आज से कहां सदियों से बस तुम्हारा इंतज़ार है  एक तू है जो मुझे मिटाने को तैयार हैं तेरी राह देख देख नयन ये सरमा जाते हैं मन ये कुन्दन करता हम पागल से नजर आते हैं जानें क्या क्या त्याग कर तुझे में पुकार रहा तेरे सिर्फ़ तेरे लिए जग को ललकार रहा। तुम आओगे कब  यही गर पता होता  इन्तजार में ही तब जानें कितना मज़ा होता तेरे न मिलने से निर्धन नजर आता हूं इसी से अपनें दोस्तों कि उपेक्षा भर पाता हूं फिर भी उन्हीं कि राह देख बस जीवन जी लेता हूं उन्ह

मनमोहकता छोटी कविता

 तुम कितने पास आ गये हों तुम्हारी निकटता में  जितना उत्कृष्ट निश्छल प्रेम का अभाव हो रहा है तुम प्रेम हों कि परमात्मा योगी हों कि भोगी हो नर हो कि नारायण हों क्या हो तुम मेरी समझ में नहीं आता यह समझ हर पल धोखा देने को तत्पर है फिर भी तुमने इस समझ कि कमजोरी को जीत लिया है समझ के भेद विलीन हो गए हैं तुम जो हमारे निकट आ गये हों तुम्हारी नजरे हमें कृपा दृष्टि बन आनंदित करती है तुम्हारी मुस्कान हमारे क्लेशों को मृतवत करने का आवाहन हैं तुम्हारी मधुर अमृत वाणी हम पर वरसती है तो हमारे कानों से  हमारे रोम रोम को रोमांचित कर सार्थकता का बोध देती है । तुम कोन हो कोन सी शक्ति से कोन से अद्भुत सौंदर्य से तुम सत्य कि परिभाषा लिखनें को तत्पर हो तुम हम जैसे अभागों के जीवन में भाग्य बन उदय हो रहे हो  तुम्हारी निकटता का बोध हमें एकान्त में रह  तुम्हारे उन सत्य पर विचारने को कहता जो तुमसे एकाकार हो गये है तुम्हें अपनों पर आंनद भरा गर्व है तुम्हारी चाल में अनोखी अल्हड़पन है तुम्हारे स्वभाव में मनमोहकता है  तुम्हारी दृष्टि से आंनद बरसता है वह आंनद तुम्हारे साथ रह कर एकान्त में एकला चलो रे का  गाना गाने को 

प़ेम के दो शब्द अध्यात्म कविता

 प्रभु कब करोगे कृपा मुझ पर कब कब तड़पा तड़पा मेरी भावनाओं को तपायोगे झुलाते जाओगे कब तक मेरे नयन को रोज अपनी तरफ अपने दर कि तरफ शुवह शाम दोपहर  आधी रात तुम रहो या न रहो  फिर भी देखने को वाट जोहने को छटपटाहट को मजबूर करते रहोगे कब तक मुझे देख मेरी टेड़ी मेंडी पागलों सी सूरत देख  दिवानगी देख  मुसकुरा मुसकुरा कब तक भ़मओ को भंवर में बहायेंगे आसमान देख देख  और आसमान पर तुम्हें देख देख बहुत वक्त हो गया प्रभु यह जर जर शरीर इन्तजार कर थका थका सा न जाने कब से  तुम्हें तुम्हारे भक्तों कि आवाजें मुस्कुराहटों को देखकर उबा नहीं आशा विश्वास के बादल मन में तन में छाए हैं जा रहें हैं जी चाहता है मन चाहता है और आत्मा चाहतीं हैं कि सिर्फ ऐक बार उपर से अपने आसमान से नीचे आओ करीब से देखो  इस दिल को इस शरीर को  इन भावनाओं को जो सिर्फ तुम्हारे लिए तुम्हारे दो शब्दों के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर करने को तत्पर है। उतरो प़भु थोड़ी देर को सही आओ मिलों बात करो और चल दो  बस दो शब्द ही आपके मेरी जिंदगी गुजारने केलिए पर्याप्त हों जाएंगे  इन दो शब्दों के बल पर में हंसते हंसते न जाने कितनी बाधाऐं पार कर एक सफल नाविक ब