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कंटीली राहें एक लेखक कि आत्म कथा भाग एक


 का जन्म संवत् 1971 माह 06 तारीख   30 को हुआ था ईश्वर ने धरती पर दो माह पहले ही भेज दिया था  हां उस समय देश  का पड़ोसी  देशों से युद्ध चल रहा था सीमा के आर पार बम धमाके हो रहै थे दोनों और भय का माहौल था ऐसे ही समय सावन कि घनघोर वारिस गरज चमक के साथ  एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे थे कलमकार खैर जन्म होने कि अगले सुबह ठीक ठाक रात्रि पहर को याद कर घर के बड़े मुखिया जो रिश्ते में दादा लगते थे सुबह ही पंडित जी के पास नामकरण संस्कार के लिए पहुंच गए थे  पंडित मुरलीधर नित्य कर्म से निवृत्त होकर चबूतरे पर लोटा में जल भरकर नीम कि दातुन से अपने तम्बाकू से मैले दांतों को माज रहें थै सहसा नजर घुमाकर 

पंडितजी,‌‌:-  सुबह-सुबह से कैसे आना हुआ दाए जू बुन्देलखण्ड कि ग्रामीण संस्कृति मे ठाकुर समाज के बड़े बुजुर्गो को दाऊ जू कहकर आज भी संबोधित करते हैं ।

दाऊ जू जिनका शुभ नाम ठाकुर सुमर सिंह था मजबूत कद काठी गोरा चिट्ठा कसरती बदन 

 के ऊपर सफेद  सफेद रोबदार मूंछ फिर सफेद ही दाढ़ी लगभग सत्तर साल कि उम्र होने के बाद भी किसी पहलवान से कम नहीं थे तीस चालीस सदस्यों का संयुक्त परिवार के मुखिया थे ।

दाऊ जू :- पांव लागू महराज कहकर चबूतरे पर बैठ गए थे पंडित मुरलीधर जी ने जल्दी जल्दी दांतों पर दातुन का घर्षण किया फिर दातुन को बीच से फाड़कर जीभ को साफ कर मुंह धोया और आवाज देकर बेटा लछ्मी नारायण दाऊ जू को बैठने के लिए दरी ला और हां मां से कह ऐक कप चाय और ज्यादा बनाए 

अन्दर से बैठने के लिए दरी आ गई थी पंडित जी को अलग आसन आया था दोनों के बीच वार्ता होने लगी थी

पंडितजी:- जजमान कहिए कैसे आना हुआ 

दाऊ जू  :- बड़ी बहू पेट से थी रात्रि नया कुटुंब में मेहमान आया है मेरा मतलब नाती हुआ है जन्म का पहर घड़ी लिखकर लाया हूं आप उसका समय अपने पत्रा मे दर्ज कर ले फिर कुछ संकुचित होकर और हां नाम राशी गुणों को बता दे 

पंडितजी :-  हो हो हो नाती हुआ है दाऊ जू  फिर बेटा लछ्मी नारायण अभी तक चाय नहीं आई चूंकि सावन का महीना था आसमां में बादल समुद्र से जल भरकर जगह जगह वरशा  रहें थै दोनों के ऊपर भी कुछ बूंद पानी गिर रहा था वारिस से बचने हेतु बरामदे में जा बैठे थे चाय के साथ पत्रा भी आया था 

पंडित जी:शुभ  समाचार शुभ घड़ी शुभ नक्षत्र (पत्रा खोलते हुए) दाऊ जू पैसा दान देना पड़ेगा 

चूंकि वह जमाना सस्ते का धा पांव पैसा दस पैसा कि भी कीमत थी पांच पैसा मे भरपेट भोजन मिल जाता धा फिर अठाना बारह आने मे पसेरी भर कुदवा बशारा  मिल जाता धा  जौ गेहूं कि कीमत अलग थी उस जमाने में तीन तरह कि रोटी पकाने का चलन था मेहमान के लिए गेहूं , फिर घर के पुरुष के लिए जो आखिर में महिलाओं के लिए वसारा कुदवा कि रोटी  देश को आजाद हुए दो ही दशक हुए थै   लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनी जड़ों को मजबूत कर रही थी फिर सीमा पार देशों से दो दो बार लड़ाई ऐसी परिस्थिति में सरकार का खजाना खाली था ओर टेक्नोलॉजी का अभाव था ऊस जमाने में जीवन यापन करना कितना मुश्किल भरा होगा ??

ख़ैर समय नं करवट ली देश अपनी तकनीकी के दम पर आगे बढ़ गया 

 टेक्नोलॉजी के बदौलत सिंचाई का साधन आ गया था खेतों का सीना ट्रेक्टर चीर रहै थे चारों ओर चना गैंहू मक्का शरसौ   आदि कि फसलें लहलहा रही थी किसानों के मुरझाए चेहरे खिल उठे थे देश विकासशील देशों कि सूचि में शामिल हो गया था ।

दाऊ जू :- कुर्ता कि जेब में हाथ डालते हुए उन्होंने आठ आना निकाल कर पत्रा पर रख दिए थे ।

पंडित जी  :- ही ही ही जजमान महंगाई पांव पसार रही है फिर देश कि सीमा के दोनों ओर से तोप से गोले दागे जा रहें हैं आसमां में लडाकु जहाज गरज रहे हैं  अब ऐसी-ऐसी हालात में महंगाई पांव पसार रही है कहें देता हूं अठाना में नामकरण नहीं कर सकता । दाऊजू:- हां महाराज रेडियो पर खबरों में सभी स्टेशनों पर समाचार में युद्ध का वर्णन बता रहे हैं 

 पंडित जी  भगवान शिव सभी का भला करे कैसा समय आ गया है कि इंसान ही इंसान का खून का बहानें में लगा है ।

खैर दोनों के बीच दुनिया जहान कि बातें होती रही थी फिर पंडित जी पांच रूपए पच्चीस पैसे मे पत्रा खोलने के लिए मान गये थे ऊंगली पर गृह नक्षत्र  कि गणना कर रहे थे फिर उन्होंने बालक का भविष्य मुस्कुरा कर बताया  यह बालक बड़े ही शुभ मुहुर्त में धरती पर जन्मा है यह बहुत बड़ कवि लेखक बनेगा जैसे कि महाकवि कालिदास और गोस्वामीजी तुलसी या फिर कबीरदास आदि पर ......वह कहते कहते कुछ छड  रूक गये थे 

दाऊ जू:- आगे आगे क्या होगा बताइए महराज सब शुभ है ? 

पंडित जी:- जजमान गृह नक्षत्र कह रहे हैं कि यह घर गृहस्थी में सफल नहीं होगा सारे जीवन अपने आप के ख्यालों में खोया रहेगा इस कि कल्पना शक्ति इसे सृष्टि के चांद सूरज तारों कि सैर कराएगी  सारा जीवन घुम्मकड़ रहेगा ।

पंडित जी के बताने पर दाऊ जूं कि पेशानी पर बल पर रहें थे फिर उन्होंने कहा कि महाराज ब्याह के बाद तो सम्हलने  जाएगा कि ..??

पंडित जी:- जजमान इसके भाग्य में सारे जीवन पत्नी का साथ नहीं और हां नक्षत्र   कह रहे हैं कि यह कामी रहेगा स्त्रियां इस कि कमजोरी रहेंगी और यह नशेड़ियों का सरदार बनेगा ।

दाऊ जूं :- कोन सा रोग है जिसका इलाज नहीं कुछ तो उपाय होगा  और उन्होंने अचकन कि जेब   में हाथ डाल कर पांच रूपए फिर पत्रा पर रख दिए थे ।

पंडित जी:- पैसा देखते ही है बिल्कुल है इस बालक को हिन्दी साहित्यhttps://www.kakakikalamse.com/2021/04/blog-post.html कि किताबें धर्म ग्रंथों कविता कहानी उपन्यास से दुर रखना जरूरी शिक्षा के बाद शादी कर देना ।

किदबंती   है कि भगवान बुद्ध के जन्म पर राज ज्योतिषी ने उनके पिताजी को अर्थी न दिखाने कि सलाह दी थी कारण अर्थी देखकर बे संन्यास धारण कर लेंगे हुआ भी यही ....।

कलमकार कि जरूरी शिक्षा पूरी हो गई थी दसवीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली थी पर इस बीच उन्हें चूंकि गांव में एक बुजुर्ग थे सरकारी नौकरी से प्रोफेसर के पद से रिटायर हो कर गांव में आ बसे थे मस्तमौला इंसान थे बच्चों के साथ बच्चों जैसा व्यवहार साथ ही बच्चों को निशुल्क पढ़ाते भी थे और साहित्य के बहुत बड़े प्रेमी उनके पुस्तकालय में मुंशी प्रेमचंद गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर शरद चंद्र बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय विदेशी लेखक औ हेनरी टाल्सटाय कार्ल मार्क्स आचार्य रजनीश जेसै दार्शनिकों कि अनेकों कालजयी पुस्तकें थी कलमकार भी किताबों के बीच मे छिपा कर घर ले आते थे चूंकि ऊस जमाने में लाईट हर गांव में नहीं थी डिब्बी लालटेन से ही घर के काम साथ ही पढ़ाई करना पड़ती थी परिवार को पता नहीं था कि रात्रि में यह उपन्यास कविता आदि पढ़ रहे हैं एक दो बार पकड़ भी गये थे फिर पिटाई भी हुई थी पर अब तो कलमकार कभी गोदान मे हरिया के दुःख से दुःखी हो कर रो पड़ते तब कभी किसी और पात्र में अपने आप को अवतरण कर लेते कुल मिलाकर संसार का व्योहार के ज्ञान से कोसों दूर थे कल्पना लोक में जैसे उन्मुक्त होकर हिरणों का झुंड विचरण करता है ।

कलमकार अब  अठारह बरस मे चल रहे थे बचपन से किशोर अवस्था में प़वेश  कर रहे थे चेहरे पर हल्की हल्की मूंछ उग  आई थी विधाता ने रूप रंग कद काठी शुतवा  नाक लम्बा कद सुगठित शरीर गोरा चिट्ठा ऐसे शरीर में योवन उफान पर था  तब स्वाभाविक है पर लिंगी रूझान बढ़ेगा कलमकार के भी स्वप्न में वयस्क लड़कियां आने लगीं थी और शादी सुदा एक दो बच्चों कि माता ।

चूंकि कलमकार ने जिस देव भूमि पर जन्म लिया था जहां पर परस्त्री गमन या फिर हम उम्र कि लड़कियों से बात हंसी ठिठोली भी एक सीमा तक करने का  रिवाज था अगर कोई भी किशोर किशोरी इस सीमा को ज़रा सा भी लांघने कि कोशिश करता था तब उसे परिवार के सदस्य शारीरिक यातना देकर उसे कंट्रोल करने का प्रयास करते थे और फिर जल्दी ही ब्याह कि जंजीर में बांध कर उसे से किनारा कर लेते थे ।

ऊन दिनों गांव में पहली पढ़ी लिखी बहु आयी थी जिसके चर्चे पूरे गांव में थे जिसकी सुंदरता के चर्चे हर मर्द कि जुवां पर थे  चूंकि उसका पति उससे उससे बींस वर्ष बड़ा था जो सरकारी महकमे में चपरासी था और शराब का सेवन करता धा या यूं कहें कि वह शराबी उस के पति का नाम गोरेलाल था ।

कलमकार  का एडमिशन शहर के अच्छे स्कूल में बारहवीं में उसके पिता ने कराया था चूंकि शहर गांव से दूर पढ़ता था ऐसे में उस को  साइकिल दिलाई गई थी  उन दिनों गांव से इक्के दुक्के लोग हीं नियमित साइकिल से शहर आते जाते थे कभी कभी गोरेलाल और कलमकार साथ साथ आगे पीछे साइकिल चला कर आपस में बातचीत करने लगते थे चूंकि गांव बड़ा गोरेलाल दूसरे मुहल्ले में रहते थे ऐसे में एक दूसरे के घर आना-जाना दशहरा पर्व पर ही होता था एक दिन गोरेलाल शाम को  किताब कि दुकान पर खड़े हुए थे शायद कोई हिन्दी मासिक पत्रिका खरीद रहे थे जैसे कि मुक्त या फिर मेरी सहेली या कोई भी उपन्यास कोतूहल बस कलमकार भी दुकान पर पहुंच गए थे ।

कलमकार :- काका क्या खरीद रहे हो ?

गोरेलाल:- तुम्हारी काकी के लिए किताबें जिनके नाम कागज़ पर पहले से ही लिखें हुए थे 

कलमकार :- काका तब क्या काकी पड़ी लिखी है ? 

गोरेलाल:- गर्व से दस क्लास पास हैं तेरी काकी आगे और पड़ने का कह रहीं हैं बारहवीं प़ाइवेट फार्म हराऊंगा  ही ही ही  और देख बेटा में तो पांचवीं फेल हूं और तेरी काकी गांव में सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी हैं उसने गर्व से कहां था ।

गोरेलाल ने दो एक पत्रिका थैले में डाल कर दुकान दार  से  अलग तरह कि पत्रिका कि मांग कि थीं जिसमें विदेशी जवान स्त्री के शरीर के लज्जा जनक अंगों को हर कोण में दिखाया गया था साथ ही दो-एक पुरूष उस महिला के साथ प्राकृतिक  अप्राकृतिक मैथुन में लीन थे  पुरूषों के भी न दिखाने योग्य अंग दिखाईं दे रहें थे ऊस पत्रिका के कवर पेज पर लिखा गया था कि केवल वयस्कों के लिए खैर दुकानदार ने उस पत्रिका को पेपर में लपेटकर गोरेलाल को दें दी थी फिर उनके बीच किराए कि बात चीत हुयी थीं उन दिनों ऐसी अश्लील किताबें किराया पर मिलती थी ।

शाम का समय था सूर्य देव दिन भर अपनी किरणों को पृथ्वीhttps://www.kakakikalamse.com/2021/11/blog-post.htmlhttps://www.kakakikalamse.com/2021/11/blog-post.html पर वर्षा कर थक हार कर अस्त हो रहें थे जाड़ों का समय था ऐसे में दिन भी जल्दी से अस्त हो जाता है रास्ते में कुछ गांव बीच-बीच में पड़ते थे गो माताएं जंगल से रंभाती हुयी अपने बच्चों को स्तन पान करानें के लिए लालायित हो कर वापिस आ रहीं थीं गो धूल आकाश में उड़ कर सोंधी महक वातावरण में बिखेर रहीं थीं ग्वाले गाय भैंस के झुंड को लाठी के सहारे कन्ट्रोल कर रहे थे सड़क पर सामने से एक गाय भैंस का बड़ा झुंड आ रहा था उसे देख कर गोरेलाल ने कलमकार से कहां था चलों आगे पेड़ के नीचे कुछ देर विश्राम करते हैं तब तक यह झुंड भी निकल जाएगा ।

पेड़ के नीचे दोनों बैठ गये थे गोरेलाल ने झोले से दारू कि देशी कुत्ता छाप बोतल निकाल कर गले के नीचे आधी से ज्यादा डकार ली थी शराब अन्दर जाते ही ऊसकि आंखों में नशा झलकने लगा था  फिर बीड़ी को सुलगाकर  कलमकार से कहां था ज़रा झोले में से वह किताब निकाल कर खोलना  जैसे ही कलमकार ने उस पत्रिका के पन्ने पलटें थे तब उसकी आंखें लज्जा से झुकी हुई थी उसने कहा था कि काका आप ऐसी अश्लील किताबें पढ़ते हो छी..जी..छी 

गोरेलाल:- बेटा अभी तूं बच्चा है  जब तूं जवान होगा सब समझ जायेगा फिर उससे किताब को लेकर अहा कितनी-कितनी सुंदर है कैसे सुदृढ़ देह है अहा अहा बिल्कुल तेरी काकी कि तरह बिल्कुल अप्सरा सी हैं ।

कलमकार ;- काका  तब क्या आप यह किताब काकी को भी दिखाएंगे ।

गोरेलाल :- न बेटा न मे तो इस को अकेले में ही देख कर पड़ता हूं बातों बातों में गोरेलाल ने पूरी-पूरी बोतल गटक ली थी । और किताब के पन्नो को पलट पलट कर उसकी तस्वीरों को देख रहा था  फिर बुदबुदाहट में बोला सच कहुं में पड़ नहीं सकता और उसने झटके से किताब के पन्नो को फ़ाड़ फ़ाड़ कर तितर बितर कर दिया था उस के इस व्यवहार पर कलम कार सहम गया था फिर दोनों गांव कि और चल दिए थे ।।

ऐतवार का दिन था चूंकि इस दिन स्कूल के साथ सरकारी दफ्तर बंद रहते हैं कलमकार किसी काम से गोरेलाल के मोहल्ले में गया था उसने सोचा चलो आज गोरे काका के घर पर जाकर मुलाकात कर लूं जैसे ही उसने दरवाज़े कि कुड़ी खटखटाई थीं तभी अन्दर से चूड़ियां कि खनखनाहट के साथ  एक मधुर आवाज़ में पूछा गया था कोन है 

कलमकार :- काका हैं क्या 

दूसरी ओर से क्या काम है 

कलमकार  कहना कि कलमकार आया है 

थोड़ी देर बाद दरवाजा खोला गया था एक तरूणी युवती अस्त व्यस्त साड़ी में लिपटी हुई घूंघट डाल कर खड़ी गयी थी पंलग पर गोरेलाल आंखें मलते हुए बैठ गया था पंलग के नीचे दारू कि खाली बोतल पड़ी हुई थी और कुछ बीड़ी सिगरेट पीने के आधे आधे टुकड़े उन्हीं के पास ताज़ा यूज़ किया हुआ कंडोम पढ़ा था शायद उस पर एक साथ ऊस तरूणी और कलमकार कि नज़र गयी थी तभी तो उसने उस कंडोम के ऊपर एक कपड़ डाल कर अन्दर आंगन में चलीं गयी थी आंगन के पास अटारी थी उसके पास ही खपरैल का छोटा सा किचन अटारी में से खांसने कि आवाज आ रही थी जो कि उसकी सास कि थी कुल मिलाकर घर साफ सुथरा गोवर से लिपा पुता था सिवाय पंलग के नीचे के कचरे के अलावा एक और अलमारी में साहित्य कि किताबें रखीं हुयी थीं जैसे कि आवारा मसीहा, चरित्र हीन , गोदान, कर्म भूमि, आदि आदि 

गोरेलाल :- बैठो बैठो भैया आज ससुरी ठंड ज्यादा ही थीं फिर छुट्टी का भी दिन था दोपहर में लेट गया आंख लग गई थी फिर आवाज़ देकर अरे सुनतीं हों दाऊ जूं का लड़का  हैं जरा चाय बना देना और हां  मेरी बोतल अटारी में रखीं हुयी है जरा दे देना फिर प्याज सलाद दे देना ।

कलमकार :- काका आप बहुत बहुत शराब पीते हों अच्छा नहीं ।

गोरेलाल :- बेटा यह नौ रत्नों में से निकलीं है तुम्हें पता तों हैं कि समुद्र मंथन में सुरा सुन्दरी रत्न अमृत विश निकलें थे कहकर वह ही ही ही खी खी खी कर हंसने लगा था ।

जहां कलमकार चाय कि चुस्कियां में उलझा था वहीं गोरेलाल ने दो पैग फिर से अन्दर डकार लिए थे वहीं पास ही वह तरूणी घूंघट डाले खड़  हुई थी कलमकार ने उस से बैठने को बोला था तब वह नीचे फर्श पर ही बैठ गई थी ।

गोरेलाल :- बेटा यह है तेरी काकी पिछले साल ही दसवीं पास कि है और हां हमारी शादी को एक साल ही हुआ है क्यों न पम्मी शायद उसका पम्मी नाम था पम्मी मुझसे बीस साल छोटी है  हैं न पम्मी पता है तुम्हें ? मेने तेरी काकी को दस हजार रुपए में खरीदा है और हां में इसे बहुत बहुत प्यार करता हूं मेरी पम्मी बिल्कुल नाजुक गुड़ीया कि तरह है में इस के आंखों में आंसू नहीं देख सकता और हां अगर यह आगे पढ़ना चाहें तब में इसे पढ़ाऊंगा पर कहीं अगर कोई के साथ भाग गई तब हे न पम्मी कहकर वह खुद ही ही ही ही खी खी कर हंसने लगा था 

कलमकार :- काकी आप नहीं समझाती काका को ।

कलमकार के कहने पर भी वह कुछ नहीं बोल रहीं थीं तभी गोरेलाल ने कहा कि मेरे भतीजे जैसा हैं  फिर तुम्हरा भी भतीजा जैसा हुआं न हे न पम्मी  गोरेलाल बहक रहा था । तुम्हें इसके सामने घूंघट डालने कि जरूरत नहीं हे न पम्मी 

उसने तब घूंघट खोला था गांव में जैसी खुबसूरती कि चर्चा थीं उससे भी वह अनेकों गुना अधिक खूबसूरत थी बिल्कुल अप्सरा सी किसी राजकुमारी कि तरह या कामदेव कि रति कि तर या मिस्र कि https://www.kakakikalamse.com/2021/11/blog-post.htmlमहारानी क्लियोपैट्रा कि तरह  लम्बी ग्रीवा  शुतवा  नाक कंटीली बड़ी आंखें  गोरी चिठ्ठी छरहरे बदन कि मल्लिका उन्नत वक्ष आदि कोई भी व्यक्ति उस कि सुंदरता शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता था ।

पम्मी:-  मुस्कुरा कर क्या करूं भैया बहुत समझाती हूं पर मानते नहीं फिर मुझे तो ज़रा सा भी शारीरिक मानसिक कष्ट नहीं देते हैं पर वह यह कहते हुए भूल गयी थी कि गाल पर ताजा ताजा दांतों के निशान थे और गर्दन पर भी  शायद वह समझ गई थी कि कलमकार कि नज़र उन निशानों पर पढ़ गयी है तभी तो उसने छुपाने हेतु आधा पल्लू साड़ी का डाल दिया था ।

खैर आप बताइए कौन सी क्लास में पढ़ रहे हो 

कलमकार जी बारहवीं में 

अरे वाह तब तो आप मेरी ही उम्र के हो यह तो कहते हैं कि आगे पढ़ाई जारी रखो सोचती हूं बारहवीं में प़ाइबेट दाखिला ले लूं 

गोरेलाल:- अर्ध चेतना में बिल्कुल बिल्कुल मे पढ़ाऊंगा अपनी गुड़िया को पड़ लिखा कर अफसर बनाऊंगा कलेक्टर हां कलेक्टर है न पम्मी  पर कहीं भाग मत जाना हैं न पम्मी ही ही ही 

यह साहित्य कि किताबें आप पड़ती है क्या 

जी हां चूंकि मेरा घर जबलपुर में है पास ही घर के लाइब्रेरी है पिताजी को साहित्य से  लगाव था बे किसी समय पुलिस इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत थे पर उनकी इमानदारी ही उन्हें ले डूबी थी  उनके सहयोगी अफसरों ने ही उन्हें हवालात में कैदी जो बीमार था मर गया था उस कि हत्या का दोषी ठहराया गया था कुछ वर्षों जेल में व्यतीत किए थे फिर बाहर आने पर उन्हें कैंसर हो गया था  और वह हम सब पर लाखों रुपए का कर्ज लाद कर दुनिया से चल बसे थे ।

अरे में हूं न मेरे बैंक में बहुत सारे रूपए जमा है पचास एकड़ जमीन का  मालिक हूं  सबका दे दूंगा हैं न पम्मी 

कलमकार कि बहुत बातें हुई थी और बातें करना चाहता था पर तभी गोरेलाल ने कहां था कि अब तुम जाओ कलमकार तुम हमारी गुड़िया को लायन मार रहें हो हे न पम्मी 

भैया आप जाइए अब यह बहकने लगें हैं  इनकी बात का बुरा नहीं मानिए यह दिल के बहुत ही सच्चे अच्छा इंसान हैं भगवान ने मुझ पर बहुत बहुत कृपा कि हैं जो मुझे एसा अच्छा चाहनेवाले पति मिले हैं भले ही यह मुझे दोगुनी उम्र के हैं पर इन में कोई कमी नहीं यह मुझे हर प्रकार से खुश रखते हैं रहीं बात शराब पीने कि तब में बहुत  ही जल्दी कंट्रोल कर लूंगी ।

कलमकार घर के बाहर निकल आया था फिर झटके से कुंडी लग गई थी अंदर से मिलीं जुली हंसने कि आवाज आ रही थीं पंलग कि आवाज बहुत कुछ कह रहीं थीं ।।

कलमकार को अब चौबीस घंटे ऊस स्त्री कि छवि आंखों के सामने दिखाई देने लगीं थी मन ही उसे पाने का यत्न ख़ोज रहा था शायद यह दैहिक आकर्षण था या फिर वयस्क होते हुए स्त्री शरीर को पाने कि लालसाएं या उस का रूप सौन्दर्य या फिर पंलग कि आवाजें या फिर पंलग के आजू-बाजू में बिखेर हुए उसके अंतः वस्त्र या फिर वह यूज़ किया हुआ कंडोम या फिर अलमारी में रखीं हुयी साहित्य कि किताबें ??

एक शाम शहर में वापसी के समय गोरेलाल से कलमकार कि मुलाकात हो गई थी तब कलमकार ने कहा काका घर जा रहें हैं क्या आज मेरी साइकिल कि चेन  परेशान कर रही है कहीं रास्ते में  परेशान न करे आप के साथ चलूंगा तब ठीक रहेगा ।

गोरेलाल :- बेटा जाना तो घर पर ही है पर थोड़ी देर बाद मुझे वाइन सौंप दारू कि दुकान पर जा कर दारू खरीदना है फिर चलतें है ।

कलमकार :- काका में भी आपके साथ चल रहा हूं आप दारू ले लिजिए ।

दोनों ही देशी शराब के ठेके पर पहुंच गए थे गोरेलाल ने देशी शराब कि पूरी-पूरी दो बोतल ख़रीद ली थी फिर वह बगल में ही आहता में बैठ कर पैग बनाने लगा था उसने कलमकार से कहां बेटा एक दो पैग पी लें ।

कलमकार :- नहीं नहीं काका घर पता चल जाएगा तब बहुत पिटाई होंगी ।

गोरेलाल :- देख बेटा दो तीन पैग में किसीको पता भी नहीं चलेगा फिर धनिया कि पत्ती मुंह में दबा लेना खुशबू भी नहीं आएंगी ।

कलमकार ने बहुत बहुत बार विचार किया आगे पीछे के परिणाम को समझा पर उसके सभी विचार  पीछे हट गए थे उसे तो उस खूबसूरत स्त्री का योवन दिखाई दे रहा था वह कैसे भी करके गोरे काका से दोस्ती बड़ा कर उसे हासिल करना चाहता था हां ला कि अभी तक वह वर्जिन था  पर??

कलमकार गोरेलाल ने मिलकर एक बोतल गले से अन्दर डकार ली थी  फिर  दोनों में बातचीत होने लगीं थीं 

गोरेलाल:- बेटा कलम तेरी काकी का एडमिशन करा दिया है और शहर में प्लांट खरीद लिया हैं जल्दी ही मकान बन जाएगा ।

कलमकार :- बहुत ही अच्छा किया काका काकी का एडमिशन करा कर  ।

गोरेलाल :- अफसर बनाऊंगा उसे अफसर अपनी गुड़िया को ही ही ही ही ।

कलमकार :- चूंकि उसने पहली बार शराब का सेवन किया था शराब जल्दी मस्तिष्क पर हावी होने लगीं थी  उसने कहा था काका काकी आप से आधी उम्र से हैं फिर आप बार बार ऊस पर अविश्वास कर के उसे दूसरे के साथ भाग मत जाना पम्मी कहते रहते हैं ।

गोरेलाल :- बच्चा है तूं भाई उसकी मन कि तह

 लेनी पड़ती है  फिर में तो गंवारू जवान हूं तेरी ऐसी काकी दस सम्हाल लूंगा गर्व से मूंछों पर ताव दे कर कहां था ।

कलमकार :-  मुझे इन सब बातों का कोई ज्ञान नहीं है?? 

गोरेलाल :- दाऊ जी से कहकर तेरी शादी कराना   पढ़ेगी   ?

कलमकार :- नहीं नहीं काका अभी तो पढ़ाई करना है में ऐसी झंझट में नहीं पड़ना चाहता ।

गोरेलाल:- ठीक है ठीक है चल घर चलते हैं 

दोनों ही गांव वापिस आ गए थे जैसा कि गोरे काका ने धनिया पत्ती मुंह में दबा न का कहां था उसने गांव के नजदीक झोले में से निकाल कर उस को देकर अपना बादा निभाया था जैसे ही वह घर पहुंचा पांव नशें में डगमगाने लगें थे  मां ने उसे देख कर कहा था कि बेटा कैसे चल रहा है तबियत ठीक है ? 

तब वह बनावटी मुस्कुराहट से बोला जी अम्मा साइकिल चला कर थक गया हूं फिर साइकिल कि चेन आज परेशान कर रही थी कोई बात नहीं बेटा तेरे पापा से कहकर तेरी साइकिल ठीक करातीं हूं 

ठीक है अम्मा वह अटारी पर जाकर अपने कमरे में कुंडी लगा कर समां गया था पर उसके मन-मस्तिष्क पर एक ही छवि दिखाई दें रहीं थीं वह थीं गोरे काका कि बीवी अहा कितनी-कितनी सुंदर है कैसी-कैसी मनमोहन छवि हैं जब वह मुस्कुराती है तब ऐसा लगने लगता है कि उसके साथ सारी प्रकृति हंस पड़ी हो ऊसकि हंसने कि आवाज में संगीत के सभी राग बजते हैं आह आह कैसे उससे मिलूं कैसे उसे हृदय से लगाऊ पर कैसे........??

इसी सवाल का उसके पास ज़बाब नहीं था फिर उसने मन-ही-मन निश्चित तौर पर ठान लिया था कि कुछ भी उकती करना पड़े में उसे अपने हृदय से लगाऊंगा तभी जी को चैन मिलेगा ।



 क्रमशः भाग ०१ 


 








 


 


1 comment:

  1. यह एक लेखक कि आत्म कथा है लेखक मन से आत्मा से शुद्ध रहते हैं पर सार्वजनिक जीवन में वह चरित्र हीन होते हैं यह कहानी यहीं कह रहीं हैं ।

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