यूं तो सेठ लछमी चंद को रूपयों पैसे कि कोई भी तंगी नहीं थी भगवान का दिया हुआ सब कुछ था दर्जनों कारे बंगले थे हजारों करोड़ रुपए कि (रियल एस्टेट) कम्पनी के मालिक थे अनेकों शहरों में व्यापार फैला था सेकंडों नोकर चाकर थे पावर इतना कि बढ़े बढ़े मंत्री चाय पीने को आते थे उच्च पदों पर बैठे सरकारी मुलाजिमों से अच्छा यराना था ऐक फ़ोन पर फाइलों में साइन करा लेने का अधिकार रखते थे वो बात अलग थी कि सेठ अपनी यारी नोटों के बंडल भेंट रूप में देकर निभाते रहते थे खैर पैसे से कैसे पैसे बनाए जाते थे उन्हें हर गुर बखूबी आता था

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One thought on “सेठ लछमी चंद को रूपयों पैसे कि कोई भी तंगी नहीं थी”
  1. कोरोनावायरस के समय पर लिखी गई थी यह कहानी जिस महामारी ने गरीब अमीर सब को एक नजर से देख कर अपना कहर जारी रखा।

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Kaka ki kalamse