सलोनी कॉलेज निजी कॉलेज में प़ोफेसर पद पर आसीन थी वही पति सुबोध किसी कंपनी में सिविल इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे ऐसे में दोनों का आफिस टाइम अलग अलग होता था ज्लदी उठकर पहले वह पति के लिए नाश्त लंच के लिए टिफिन पैक करती व झट-पट बाकि घर के काम निपटाने लगती हालाकि उनकी नयी नयी शादी हुइ थी दूसरे जोडो कि तरह उनमें अंहकार नहीं था दोनों ही ऐक दूजे कि भावना का सम्मान करते थे चूकि उन दोनो के साथ बूढ़े ससुर जी भी रहते थे सास कोरोनावायरस कि पहली लहर में चल बसी थी ऐसे में ससुर जी कि सेवा करनी पड़ती थी वह बेझिझक ससुर जी को कोई शिकायत का मौका नहीं देती थी ससुर जी खुश होकर ढेरों आर्शीवाद देते थे परन्तु जब से उसने नौकरी करना चालू किया था तभी से बूढे ससुर जी के व्योहार मे परिवर्तन आ गया था वह जैसे ही आफिस के लिए तैयार होकर स्कूटी के पास पहुंचती तभी आवाज़ सुनाई देती
बहू ओ बहू जरा ऐक कप चाय बना देना तुलसी के पत्ते डालकर और हां शक्कर जरा कम डालना शुरु शुरु में उसने आदेश का पालन किया पर अब उसे चिढ़ होने लगी थी उसने पति से शिकायत भी कि थी तब पति ने क्या बाबूजी जी आप को समय कि कीमत मालूम भी हैं फिर भी आप सलोनी को डयूटी जाते समय परेशान करते है शायद आप को मालूम नहीं दस मिनट लेट होने से प़सिपल मैडम उसे कितना डांटती है ।
पति के समझाने के बाद भी ससुर जी उससे कहते बहू ओ बहू जरा तुलसी चाय बना देना अब वह उनके आदेश को अनसुना कर के जाने लगी थी ऐसे ही कुछ साल निकल गये थे ऐक दिन ससुर जी बीमार हो कर असपताल में भर्ती थे सलोनी कॉलेज से छुट्टी लेकर असपताल में ससुर जी का हर प़कार का ख्याल रख रहि थी जैसे कि समय पर दबा खिलाना ,खाने, मे,खिचड़ी, तरल पदार्थ खिलाना व फिर डाक्टर कि सलाह से फलो का जूस देना इतनी सेवा करने के बाद भी उनकि हालात में सुधार नहीं हो रहा था ससुर जी ने स्नेह पूर्वक सलोनी से कहा था बेटी मेरा अंतिम समय नजदीक हैं मुझे मालूम है अब में नहीं बचूंगा यमराज के दूत आसपास अटटाहस करते हुए पलंग के चारों और घूम रहे है जाने से पहले तुलसी चाय के लिये तू मुझसे चिढने लगी थी मेरी बच्ची तुझे तो मालूम है की हमारे छोटे से मंदिर में तुलसी का पौधा तूने ही लगाया था दर असल में चाय के बहाने मंदिर में प़भु के दर्शन के लिये भेज रहा था मेरी प्यारी बेटी मेरे माता पिता ने मुझे सिखाया था जब भी हम काम के लिये बाहर जाऐ तब या तो घर के मंदिर या फिर रास्त मे जो भी देवस्थन भले हीं किसी भी मजहब का हो दर्शन कर सिर झुका कर जाना चाहिए दिन अच्छा निकलता है व नकारात्मक उर्जा मन से निकल जाती है और मेरी बहू ,बेटी, बच्ची तुम्हरी जैसी गुढी, संस्कार शील बहू को पाकर मेरा बुढापा सुख से निकल गया ईश्वर सभी बूढ़े सास ससुर को ऐसी ही बहू दे अंत में कांपते हुए हाथ को पहले सलोनी के शिर पर रखा था फिर पति सुबोध पर कुछ ही देर बाद उनकी सासे थम गई थी अब सलोनी सिसक सिसक कर रोने लगी थी पति सुबोध उसे दिलाशा दे रहे थे ।
कहानी का सार हमे अपने बूढ़े माता पिता बेटे के रूप में या फिर बहू के रूप में सास ससुर कि सेवा करनी चाहिए क्यो की बे बूढ़े हमारे लिऐ अनमोल है उनके जाने कू बाद हम लाखों रूपये कि गठरी बाध कर संसार के सभी बाजार में खरीदने जाऐगे नहीं कहि भी कभी भि नही मिलेंगे यह लघुकथा आपको प़ेरणा दायक लगि हो तब टिप्पणी कर राय दिजिएग ।