हे मानव.

 तुझे देवता ने 

भेजा है 

तेरा जनक तेरी मां पिता 

के शुक्राणु या अंडाणु है

यह तो  विज्ञान की भाषा है

हालांकि यह सही है कि जब 

मिलती है दो.देह

भले ही बे जानवर पशु पंछी कि हो 

या किसी कीट पतंग का 

या किसी 

 हाथी शेर का

दो शरीर मिलकर करते है.

सृजन 

आता है उनका अंश

जो ले कर देह हाड़ मांस कि 

 जीवन जीता है 

अपने कर्म पर 

पर  पृथ्वी लोक पर आकर

भूल जाते है अपने आप को 

किसी के अंश का 

उस कामोत्तेजक समय के भाव 

से हो जाता है सृजन .

नवजीवन के अजीवन 

 मन मस्तिष्क पर

कि कभी बनता है.

वह जानवर.

कुत्ता.

कोई कुत्ती 

कोइ गाय 

कोइ सांड 

कोइ भैस 

कोई भैंसा. कोई कीट कोई 

पतंग

कोई  कैंसर का   कीड़ा 

कोई बनता है बवासीर कि पीड़ा

पर उनका जन्म भी तो दो शरीर

 से हुआ है ।

शायद उस समय जब 

हमारे जन्म दाता

 कामदेव के वशीभूत होकर

कामोत्तेजक समय में जल रहें थे

अपनी देह  ज्वाला शांत कर रहे थे

 क्या तुम्हें पता है मेरे  देवता

 उन पलों में उनके  क्या भाव होंगे

 शायद हो शराब में मदहोश

 और खाकर किसी जीव का गोश्त 

 विस्तर पर  एक दूसरे को 

परास्त कर परमानंद को 

पाने के लिए !

 कुछ पल चरमोत्कर्ष के

आपसे मिल लेते हैं

 शायद उस समय

 उनके दिमाग में 

 पति पत्नी को बेवकूफ

 बनाने   की प्रतिस्पर्धा हो

 क्योंकि  बिजनेस टूर था 

  साथ में महिला सेक्रेटरी का 

साथ था !

या महिला बिजनेस के साथ 

पुरुष सहकर्मी था !

 धंधे की  डील थी 

काम तमाम था 

 सारे दिन थक हार कर

 वापस होटल पहुंचे थे.

उसी समय  श्रीमती खा

के पति का फोन आया.

वह फुसफुसा कर बोला 

मोहतरमा कहो कैसी हो

डिनर लिया है या नहीं कब आ रही हों ?

देखो बच्चे याद कर रहे हैं 

खाना नहीं खा रहे हैं 

कैसे कर के उन्हें सुला दिया है 

पर मे क्या करु !

 मेरी भी कुछ दैहिक संबंध 

कि जरूरत है !

कसम से अभी . 

नींद नहीं आ रही है 

 हम विस्तर होने का मन 

कर रहा है ।

 श्रीमती खा ने कहां

बेबी  आपको तो पता है 

मालिक  के साथ धंधे का 

टूर था.

सारे दिन का प्रोग्राम था 

में मीटिंग पर मीटिंग कर रही थी 

क्यों कि करोड़ों कि डील थीं ।

थक-हार कर होटल अभी आइ 

हाथ मुंह धोकर  बस 

खाना खाने जा रही थी 

तभी आप का फ़ोन आया ।

हे मेरे देवता 

आपको तो पता होगा 

कि वह पत्नी पर पुरूष 

के साथ शराब 

के पैग गटक रही थी.

है मेरे देवता 

 उस नादान ने 

झूठ बोलकर 

 क्या तुम्हें धोखा नहीं दिया

शायद हां 

 क्योंकि जब वह  मां के गर्भ में थी

 जन्म लेने के लिए आतुर थी

 उस समय उसने

 तो आपसे कितने  वादे किए होगे 

 मृत्युलोक में मैं आपको

 भूलूंगी नहीं ?

 आप के निर्देशों का

 पालन करूंगी 

पर नहीं ,

 यह तो हमारा सभी का हाल है 

 अब आप ही बताएं कैसे हम

हे देव आपके नजदीक आए

हालांकि.  भौतिकवादी युग है

  टेक्नोलॉजी का उदय है  

इंसान मंगल ग्रह पर जाने को आतुर है

 आपको हर जगह

हे देवता 

हम चुनौती दे रहे हैं.

 क्या आप को चुनौती स्वीकार है.

शायद हां.

 क्योंकि बाजी आपके हाथ हैं 

हे देव 

बचपन मे मन शुद्ध था 

आपको समर्पित था.

फिर किशोरावस्था आई 

उसी के साथ आया लुभावना पन 

लड़का-लड़की ऐक दूसरे 

का सहचर होने को थे आतुर 

श्रीं मान का लड़की के अलावा 

पड़ोस कि महिला से हो 

गये थे अनेकों बार हम विस्तर 

कंडोम का जमाना है ।

आपको कष्ट नहीं देते 

क्यों कि फ़िर आपको एक आत्मा 

भेजनी पड़ती ?

खैर वह समय निकल गया 

फिर आइ जवानी 

दाल रोटी कमाने करने 

कि वारी आई 

नोकरी के लिए 

जीवन संघर्ष चालू हुआ.

सत्य बोल कर भी कुछ 

हासिल नहीं हुआ 

झूठ बोलकर रोजी रोटी कमाई 

अब तू. ही कह 

इसमें हमारा कोइ 

दोष है ??

 फिर शादी हुई 

बच्चे हुए 

खर्च बड़ा.

इसके साथ  जीवन 

संघर्ष मे.

छल कपट किया 

ताकि बच्चों का धन 

अर्थ इकट्ठा कर 

भविष्य  उज्जवल हो 

आप ही बताएं

 हे देव 

इसमें हम मानव का कोई दोष है 

अब धन  जब आया 

 ब्लड प्रेशर  शुगर कैंसर

पेट के रोग साथ लाया ।

 पकड़ा बिस्तर पहुंचा  हॉस्पिटल 

 आई सी यू मे पडा  पडा 

अपने बहू बेटों जीवन 

संगनी को देखने को तरस रहा ??

पर तू तो   

 चेतना हीन कर मजे 

ले रहा था !

साथ ही डॉक्टर को. 

 जो मैंने रिश्वत में गरीबों का धन छीना है

उसे वापिस दे रहा था 

हे देवता 

शायद यहीं तेरा 

विधान था 

जीव देह  छोड़ने को व्याकुल थी 

पर तू सारे जीवन 

का  लेखा-जोखा

मल  मूत्र नाक 

मैं नली डला  कर 

 तड़पा तड़पा  कर  

जो मां के गर्भ मे आपसे 

 वादे किए  थे 

याद दिला रहा था 

है देवता ऐक 

वार तू मनुष्य देह 

मे इस युग मे जन्म ले 

तूझे पता चल जाएगा

कि मानव  क्या चीज है 

इसलिए हे मृत्यु के देवता 

हम मानव को  हंसते मुस्कुराते अपनी गोद मे 

लेकर  आत्मा को परमात्मा से मिलने दे।

मिलने दें ।

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One thought on ““मृत्यु के देव; “;कविता”
  1. कम शब्दों में यह कविता आपको समर्पित है मनुष्य सारे जीवन जैसे कर्म करता है उसे अंतिम में सभी कुछ याद आता है ।

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