संध्या आ गई
पर आज सुहागिन नहीं है
आज उसके चेहरे पर मुस्कान भरी लालिमा नहीं है
आज तो इन अभिमानी बादलों ने
तूफान और मेघों को न्योता देकर बुला लिया
संध्या बेचारी को मेहमानों
के स्वागत में लगा दिया
उसे आज श्रंगार नहीं करनें दिया
उसे अपने प्रीतम सूरज से नहीं मिलने दिया
पिया बगैर श्रंगार वह कर भी लें
वह सम्मान स्नेह नही पाती
उसके प्रीतम के इन्तजार में
अपने मकान मालिक बादल
के इशारे पर जी जान से लगी रही
वह सोचती रही अगर इनकी नहीं मानूंगी तब
यह इन दुश्मनों को भी यही रखेंगे
और हम जैसी सुहागिनों को
जानें किन किन घर
संदेहों के बीच अर्ध के अभाव में
आवास के चाव में
अपने अपने प्रीतम से दूर करेंगे ।
Advertisementsn