आज तो बड़ा दिन था
पर पता नहीं चला
बिना हलचल के ही गुजर गया
रोज कि भाती सूरज
उषा के साथ फाग खेलता आया
संध्या के साथ आंख मिचौली करता चला गया
चतुर्थी का चंद्रमा
उभरा अपना शीतल प्रकाश
बिखेर चल दिया
तारों कि बारात
आकाश में उतर मोन दर्शक बन
चहुं ओर बिखर गई
रोज कि भाती लोगों कि भीड़
अपना अपना कर्म कर सो गई
पंछियों के समूह प्रभात के साथ
कलरव का गान कर
संध्या आते गुनगुनाते
चहचहाते पंखों को फड़फड़ाते
घोंसलों में चलें गये
हर दिन बड़ा दिन ऐसा कहते हमें समझाते गये।।
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