तू रोज चाहे जब
क्या बजाता है
कौन सा राग छेड देता
कोन से कलाकारों को ले मंच पर
अवितरित हो नित नुतन
संगीत कि धुने बजाता है कभी भी तेरे
कलाकार थकते नहीं
रात दिन तू अपने इसारो पर
तू इनहें चला रहा
न जाने कितने अकेलो को
तू अकेला भरमा रहा
तेरे ही स्वर राग बन वह रहे हैं
तेरे गीत हमसे कुछ कह रहे है ।।
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