कल्पना क्या है
कहां है कोई हमसे पूछें तो
में बताऊं बोलूं
लेकिन किसी में ताकत नहीं
कल्पना से मिलने की
शायद उत्तर मिलें
कि मिल सकते हैं
तब मैं कहूंगा कि देख नहीं सकते
शायद कोई उत्तर दें
देख सकते हैं
तब मैं कहूंगा कि तब मेरा
मेरा मन मेरा हृदय
मेरा सीना चीड़ फाड़ कर
और देखो मेरी आत्मा में
मेरे मन में मेरे रोम रोम में
सिवाय कल्पना के
कुछ नहीं है मेरे आसपास
दाएं बाएं उपर नीचे
जो है जैसा हैं
वह भी मधु मय कल्पना मय
कला मय हो कल्पना का ही रूप है ।।
दूर से यह तस्वीरें मन को लुभाती है
पास में दिखती तो दिलों में आग लगाती है
जब ये तस्वीरें दूर दराज तक
नहीं दिखती तब जिंदगी को दुश्वार कर
रात दिन एक निर्थक भविष्य कि और भगाती है
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